मंगलवार को पश्चिमी समर्पित मालवाहक गलियारे (वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर) पर ट्रेनों को करीब दो घंटे तक रोकना पड़ा। ये रुकावट किसी तकनीकी कारण से नहीं, बल्कि एक घायल मगरमच्छ की वजह से हुई, जिसे करजन में रेलवे ट्रैक पर देखा गया। यह घटनाक्रम सुबह करीब 8:30 बजे शुरू हुआ, जब एक 8 फुट लंबा मगरमच्छ ट्रैक पर रेंगता हुआ पाया गया।
जब मगरमच्छ को देखा गया, तो तुरंत एनिमल वेलफेयर एक्टिविस्ट नेहा पटेल को सूचना दी गई। नेहा ने बताया, “हमें मंगलवार सुबह 8:30 बजे के करीब कॉल मिली कि एक मगरमच्छ रेलवे ट्रैक पर देखा गया है। हम तुरंत मौके के लिए रवाना हुए, लेकिन ट्रैफिक के कारण हमें वहां पहुँचने में 90 मिनट लगे।” मगरमच्छ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रेलवे अधिकारियों ने करीब 90 मिनट तक कोई मालगाड़ी उस ट्रैक पर नहीं चलने दी।
रेलवे अधिकारियों का यह कदम उस मगरमच्छ की जान बचाने के लिए उठाया गया, जो पहले ही घायल हो चुका था। वन विभाग और रेलवे अधिकारियों की यह मानवीय पहल प्रशंसा के योग्य है।
नेहा पटेल और वन विभाग के कर्मी घटनास्थल पर पहुंचे और पाया कि मगरमच्छ गंभीर रूप से घायल था, लेकिन जीवित था। “हमने तुरंत मगरमच्छ को वडोदरा इलाज के लिए भेजा। ट्रैक से वाहन तक उसे ले जाने में थोड़ा समय लगा क्योंकि वह काफी भारी था,” नेहा ने कहा।
करजन के राउंड फॉरेस्ट ऑफिसर, कुंवरसिंह बोडाना ने रेलवे अधिकारियों के इस प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा, “रेलवे अधिकारियों ने पश्चिमी समर्पित मालवाहक गलियारे पर ट्रेनों को रोककर मगरमच्छ की जान बचाई, जो संभवतः रात के समय किसी जलाशय से निकलकर ट्रैक पार करने की कोशिश कर रहा था और ट्रेन की चपेट में आ गया। उसका जबड़ा घायल है, और वर्तमान में उसका वडोदरा में इलाज चल रहा है।”
यह घटना यह दर्शाती है कि जब इंसान और वन्यजीवों के बीच संघर्ष होता है, तो थोड़ी सी तत्परता और संवेदनशीलता से भी जानें बचाई जा सकती हैं। रेलवे अधिकारियों और वन विभाग ने मिलकर एक घायल प्राणी को समय रहते बचाया, जो एक अनुकरणीय उदाहरण है।
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