CATEGORIES

April 2025
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
282930  
Saturday, April 19   1:13:54

भारत का मकरसंक्रांति!

भारत एक बहुरंगी और तरह तरह के त्योहारों और संस्कृति से भरपूर देश है।यह हर प्रदेश का अपना रंग,रूप,और भाषा है।यह पर एक ही त्योहार विविध स्वरूपों में भी मनाया जाता है,जैसे की मकर संक्रांति।उत्तराखंड में भी यह त्योहार अपने रूप में मनाया जाता है

उत्तराखंड देश का प्रकृति सौंदर्य से भरपूर प्रदेश है। यहा की संस्कृति भी अनूठी है।यहां उत्तरायण पर्व को घुघुतिया त्योहार के नाम से मनाया जाता है।इस त्योहार की अपनी अलग ही पहचान है। त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाकर कहते हैं- ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।इस त्योहार के संबंध में एक प्रचलित कथा है, जब कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद अपनी रानी के साथ बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की कृपा से उनके वह पुत्र का जन्म हुआ ।उसका नाम निर्भयचंद रखा गया। निर्भय को उसकी मां प्यार से ‘घुघुति’ के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी। उसको डराने के लिए कहती कि ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’। यह सुनकर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद छोड़ देता। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई।उधर मंत्री, जो राजपाट की उम्मीद लगाए बैठा था, घुघुति की हत्या करने सोचने लगा, ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब वह उसे चुप-चाप उठाकर ले गया। जब वह घुघुति को जंगल की ओर लेकर जा रहा था, तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा। इतने में सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एकसाथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए। घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया तो सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नजर उस पर पड़ीं तोउन्होंने वह माला रानी को दी। सब ने माला को पहचान लिया था। इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा। सबने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है।राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे पीछे चलने लगे। कौवा आगे-आगे और घुड़सवार पीछे-पीछे। कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। घर लौटने पर जैसे घुघुति की मां की जान में जान आई। मां ने माला दिखाकर कहा कि आज यह माला नहीं होती, तो घुघुति जिंदा नहीं रहता। राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड दिया। घुघुति के मिल जाने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और इसने बच्चों के त्योहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूमधाम से यह त्योहार मनाया जाता हैं। इसके लिए हमारे यहां एक कहावत भी मशहूर है कि श्राद्धों में ब्राह्मण और उत्तरायण के दिनकौवे मुश्किल से मिलते हैं। इस दिन उत्तराखंड में मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है, जिसे ‘घुघुत’ नाम दिया गया है। इसकी माला बनाकर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डालकर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं -‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।लै कौवा भात में कै दे सुनक थात’।लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़’।’लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़’।लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे’।