सिंगापुर: भारत के 18 वर्षीय डी. गुकेश ने इतिहास रचते हुए शतरंज में सबसे कम उम्र में वर्ल्ड चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया है। उन्होंने मौजूदा चैंपियन चीन के डिंग लिरेन को 14वीं और निर्णायक बाजी में हराकर 0.5 अंकों की बढ़त से खिताब अपने नाम किया। दोनों खिलाड़ियों का अंतिम स्कोर 7.5-6.5 रहा। इस जीत के साथ गुकेश को लगभग 11 करोड़ रुपये का इनाम भी मिला।
गुकेश और डिंग लिरेन के बीच हुए रोमांचक मुकाबले में 13वीं बाजी ड्रॉ रही, जिसके बाद यह तय हो गया कि खिताब का फैसला 14वीं और अंतिम बाजी में होगा। इस निर्णायक मैच में गुकेश ने जीत दर्ज कर खिताब पर कब्जा कर लिया। अगर यह मैच भी ड्रॉ हो जाता तो दोनों के 7-7 अंक होते और खिताब का फैसला ‘फास्ट फॉर्मेट’ में होता, जिसमें डिंग लिरेन को बढ़त मानी जा रही थी।
ऐतिहासिक उपलब्धि
गुकेश की इस जीत ने देशवासियों को गौरवान्वित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कई नेताओं और खेल प्रेमियों ने सोशल मीडिया पर उन्हें बधाई दी। शतरंज के इतिहास में यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
गुकेश ने अपने शानदार प्रदर्शन के दौरान 14 बाजियों में से तीसरी, 11वीं और 14वीं बाजी में जीत हासिल की, जबकि डिंग लिरेन ने पहली और 12वीं बाजी जीती। शेष बाजियां ड्रॉ रहीं। निर्णायक बाजी में गुकेश ने काले मोहरों से खेलते हुए 59वीं चाल में डिंग लिरेन की गलती का फायदा उठाया और मुकाबला अपने नाम किया।
सबसे कम उम्र में बने चैंपियन
गुकेश 18 साल की उम्र में विश्व चैंपियन बनने वाले दुनिया के सबसे युवा खिलाड़ी हैं। इससे पहले रूस के गारी कास्पारोव ने 22 साल की उम्र में यह खिताब जीता था।
खिलाड़ी | देश | वर्ष | उम्र |
---|---|---|---|
डी. गुकेश | भारत | 2024 | 18 वर्ष, 8 माह, 14 दिन |
गारी कास्पारोव | रूस | 1985 | 22 वर्ष, 6 माह, 27 दिन |
मैग्नस कार्लसन | नॉर्वे | 2013 | 22 वर्ष, 11 माह, 24 दिन |
मिखाइल ताल | रूस-लातविया | 1960 | 23 वर्ष, 5 माह, 28 दिन |
अनातोली कार्पोव | रूस | 1975 | 23 वर्ष, 10 माह, 11 दिन |
गुकेश का सफर
डी. गुकेश ने 17 साल की उम्र में फीडे कैंडिडेट्स चेस टूर्नामेंट जीतकर मौजूदा चैंपियन डिंग लिरेन को चुनौती देने का अधिकार प्राप्त किया। यह पहली बार हुआ जब शतरंज के 138 साल पुराने इतिहास में विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में दोनों खिलाड़ी एशिया से थे।
चैंपियन बनने के बाद गुकेश ने अपनी विनम्रता व्यक्त करते हुए कहा, “भले ही मैंने खिताब जीता है, लेकिन मेरे लिए असली चैंपियन मैग्नस कार्लसन ही हैं।”
गुकेश ने अपनी इस जीत को अपने माता-पिता को समर्पित करते हुए कहा, “यह मेरी नहीं, बल्कि मेरे माता-पिता के 10 साल के समर्पण का फल है। यह खिताब मैंने उनकी खुशी के लिए जीता है। उनका सपना था कि मैं विश्व चैंपियन बनूं।”
भारत की शतरंज में बढ़ती ताकत
भारत में शतरंज का विकास विश्वनाथन आनंद के प्रयासों से हुआ है, जो पांच बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुके हैं। आखिरी बार आनंद ने 2012 में खिताब जीता था। गुकेश की इस उपलब्धि ने भारत को शतरंज की दुनिया में एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।
गुकेश की इस जीत ने न केवल भारत का नाम रोशन किया, बल्कि देश में शतरंज के खेल को भी नई प्रेरणा दी है। अब देखना यह है कि वह आगे किस तरह अपने करियर को और ऊंचाइयों पर ले जाते हैं।
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