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भारत-बांग्लादेश: ऐतिहासिक साझेदारी से वर्तमान चुनौतियों तक का सफर

भारत और बांग्लादेश का रिश्ता ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से गहराई से जुड़ा हुआ है। 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसने उसे एक नया राष्ट्र बनने में मदद की। लेकिन समय के साथ बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल, कट्टरपंथी ताकतों का उभार और आर्थिक अस्थिरता जैसे कई संकट उत्पन्न हुए।

बांग्लादेश की आज़ादी और भारत की भूमिका 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना। उस समय भारत ने न केवल सैन्य सहायता दी बल्कि लाखों शरणार्थियों को भी आश्रय दिया। मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश ने एक लोकतांत्रिक देश के रूप में अपनी यात्रा शुरू की।

शेख हसीना और भारत का समर्थन बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई। उनकी बेटी, शेख हसीना, जो बाद में प्रधानमंत्री बनीं, को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भारत ने उन्हें समर्थन दिया और शरण दी। समय के साथ, उन्होंने बांग्लादेश की राजनीति में एक मज़बूत नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई।

आर्थिक और सामाजिक बदलाव बीते कुछ वर्षों में बांग्लादेश ने आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की है, लेकिन बढ़ती बेरोज़गारी, इस्लामी कट्टरवाद और राजनीतिक अस्थिरता ने देश के विकास को प्रभावित किया। भारत और बांग्लादेश के संबंध कभी-कभी व्यापारिक विवादों और सीमा मुद्दों के कारण तनावपूर्ण भी रहे हैं।

वर्तमान स्थिति और चुनौतिया आज बांग्लादेश कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक कट्टरता और अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं। भारत के लिए बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण पड़ोसी है, और दोनों देशों के मजबूत संबंध क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आवश्यक हैं।

भारत और बांग्लादेश का रिश्ता सिर्फ पड़ोसी होने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी जुड़ा हुआ है। हालांकि, वर्तमान में बांग्लादेश में बढ़ते तनाव और अस्थिरता से भारत भी प्रभावित हो सकता है। इसलिए दोनों देशों को आपसी सहयोग और कूटनीतिक संवाद के माध्यम से इन चुनौतियों का हल निकालना होगा।