भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां गांव-गांव में ऐसे कई बच्चे और युवा मिल जाएंगे। जिन्हें एक बार मौका मिले तो वे देश का नाम रोशन कर दें। आज हम आपको यूपी के एक ऐसे ही गांव की कहानी बताने वाले हैं।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के रधिया देवरिया गांव के तालाब में गांव के बेटे-बेटियां ओलंपिक की तैयारी कर रहे हैं।
संसाधनों की कमी के बावजूद गांव के युवाओं ने तैराकी में कई मेडल जीते हैं। नेशनल खेल चुकीं सौम्या, अंकिता और प्रियंका का कहना है कि अब हमारा सपना ओलंपिक में देश के लिए खेलना और तैराकी में पदक लाना है। इसके लिए हम गांव के तालाब में ही कड़ी ट्रेनिंग कर रहे हैं। मौसम कोई भी हो, हम हर सुबह जल्दी झील पर पहुंच जाते हैं। पहले हम प्रार्थना करते हैं और फिर 4 घंटे तक झील में तैराकी का अभ्यास करते हैं।
राष्ट्रीय तैराकी खिलाड़ी और वर्तमान कोच रंजीत शर्मा कहते हैं- यहां के तैराकों को तैराकी की सुविधाएं और अच्छी कोचिंग मिले तो वे ओलंपिक में पदक जीत सकते हैं।
आपको बता दें गाँव में तैराकी की शुरुआत वर्ष 1985 में हुई और कई लड़कियाँ गाँव के तालाब से तैराकी सीखकर राष्ट्रीय स्तर पर खेल रही हैं। जिसमें सौम्या ने राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीता है। अजित ने भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय सब जूनियर तैराकी में 50 मीटर बटरफ्लाई में स्वर्ण पदक जीता है।
जब गांव के भूपेन्द्र उपाध्याय ने इस झील में तैरना सीखा और पूर्वोत्तर रेलवे के कोच बन गये तो यह सिलसिला जारी रहा और गांव की झील एक प्रकार का स्विमिंग पूल बन गयी है।
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