हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन से ठीक पहले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी का व्रत किया जाता है। इस बार वरलक्ष्मी व्रत 25 अगस्त को है। इस दिन मां लक्ष्मी के वरलक्ष्मी रूप की पूजा-अर्चना करने का विधान है। वरलक्ष्मी व्रत की दक्षिण भारत में विशेष मान्यता है।
सनातन धर्म में मां लक्ष्मी को विशेष स्थान प्राप्त है। मां लक्ष्मी धन की देवी कहीं जाती हैं। मां लक्ष्मी की कृपा होने से जीवन में सुख, शांति, धन और समृद्धि बनी रहती है। हिन्दू धर्म के अनुसार शुक्रवार मां लक्ष्मी को समर्पित है। ऐसे में मां वरलक्ष्मी का व्रत रखने से अष्टलक्ष्मी की कृपा बरसती है। विधि विधान से यह व्रत करने पर जीवन से दरिद्रता दूर हो जाती है और सुख समृद्धि का आगमन होता है।
पौराणिक मान्यता के मुताबिक स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को वरलक्ष्मी व्रत की कथा सुनाई थी। जिसके अनुसार मगध देश में कुंडी नाम का नगर था। जहां चारुमती नाम की महिला रहती थी, जो मां लक्ष्मी की परम भक्त थी। चारुमति प्रत्येक शुक्रवार को मां लक्ष्मी का व्रत रखकर पूरे विधि विधान के साथ उनकी पूजा करती थी। एक बार मां लक्ष्मी चारुमती के सपने में आयी और उन्हें सावन के आखिरी शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत करने को कहा।
मां लक्ष्मी के आदेशों का पालन कर चारुमती ने विधि पूर्वक व्रत किया। चारुपती के पूजा संपन्न होने के बाद वरलक्ष्मी का आशीर्वाद पर कर उसकी किस्मत खुल गई। चारुमती का घर अन्न, धन से भर गया। उसके बाद नगर की सभी महिलाएं इस व्रत का पालन करने लगी। जिसके फलस्वरुप पूरा नगर धन, संपत्ति, अनाज से निहाल हो गया। मां लक्ष्मी की कृपा से यहां रहने वालों को कभी धन की कमी नहीं हुई। ऐसे ही धीरे-धीरे इस व्रत का चलन दक्षिण भारत में बढ़ गया। यह व्रत उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और उड़ीसा के लोग रखते हैं।
वरलक्ष्मी व्रत 2023 मुहूर्त
सिंह लग्न की पूजा सुबह 5 बजकर 55 मिनट से सुबह 7 बजकर 42 मिनट तक होगी।
वृश्चिक लग्न की पूजा दोपहर 12 बजकर 17 मिनट से 2 बजकर 36 मिनट तक होगी।
कुंभ लग्न की पूजा शाम को 6 बजकर 22 मिनट से लेकर रात को 7 बजकर 50 मिनट तक होगी।
वृषभ लग्न की पूजा रात को 10 बजकर 50 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक की जाती है।
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