देशभर की बुआओ को शायद यह बात रास न आए, लेकिन यह बात सोचकर देखें बड़ा मजा आएगा। सोचने में थोड़े ही पैसे लगते हैं यह तो आपकी मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि आप इस बारे में क्या-क्या सोच सकते हैं। चलिए मैं आपको सोचकर बताती हूं कि अगर बच्चों को नाम रखने का भी अधिकार सरकार के पास होता तो क्या होता। इस बात पर दिए गए सुझाव बुआओं को शायद ही पसंद आए लेकिन देशभर की बुआओं को यह काफी पसंद आएगा।
इस मांग के पीछे एक ठोस वजह छोटे-छोटे गांवों में भी अक्सर दस-दस दिनेशभाई और बारह-बारह गीताबेन हैं। ऐसे में यदि किसी एक व्यक्ति के जीवन में कोई घटना घट जाए, तो यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि वह घटना किस दिनेशभाई या गीताबेन के साथ घटी है। अक्सर मोहल्ले वालों का ज्यादा वक्त यही सोचते हुए बीत जाता है। बाकी सभी दिनेशभाई या गीताबेन बिना किसी कारण के मुश्किल में पड़ जाते हैं।
कई बार तो ऐसा होता है कि पिता का नाम और उपनाम भी समान हो जाता है। ऐसे में असली मुद्दा क्या है, यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है। मोबाइल फोन में किसी इमरजेंसी नंबर को खोजना हो तो एक ही नाम के कई व्यक्तियों के नाम सामने आ जाते हैं। ऐसे में हड़बड़ी में किसी गलत व्यक्ति को फोन लगने की संभावना बढ़ जाती है। और आपके साथ भी एक न एक बार शायद ऐसे हुआ भी होता कि भाई सॉरी किसी और प्रकार को फोन लगा रहा था…
इसलिए, यदि बच्चों का नामकरण करने की जिम्मेदारी सरकार के हाथों में हो, तो प्रशासनिक कार्यों में कई प्रकार की समस्याएं हल हो जाएंगी। आधार कार्ड और पैन कार्ड की तरह नाम भी एक सिस्टम के माध्यम से जनरेट किया जाएगा। बच्चे के जन्म के कुछ ही दिनों में उसका नाम पोस्ट के माध्यम से घर तक पहुंच जाए।
इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित होगा कि किसी भी व्यक्ति का नाम दूसरे से समान न हो। जैसे आधार नंबर हर किसी का अलग होता है, वैसे ही नाम भी अलग-अलग होंगे। मतलब, जितने लोग, उतने नाम! इसके लिए सरकार को पूरे देश से नामों का एक बड़ा डेटाबेस तैयार किया जाता जिसे ‘नाम बैंक’ कहा जाता।
नामों की इस बैंक के संचालन के लिए सरकार को एक अलग मंत्रालय बनाना पड़ता, जिसका काम केवल नामकरण करना होता। इस मंत्रालय के नेतृत्व के लिए किसी योग्य और प्रसिद्ध व्यक्ति को ‘नाम मंत्री’ नियुक्त किया जाता। नाम मंत्री की मदद के लिए देशभर की बुआओं को नियुक्त किया जाता। और बुआओं को यही नाम रखने के पैसे मिलते उन्हें सरकारी नौकरियां ऑफर की जाती।
हालांकि, आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य दस्तावेजों में त्रुटियां अक्सर हो जाती हैं। ऐसी ही स्थिति नामों के साथ भी हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, अगर सरकार द्वारा किसी बच्चे को गलत नाम आवंटित कर दिया जाए, तो उसे सुधारने के लिए लंबी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता।
ऐसे में एक हास्यास्पद स्थिति बन सकती बन जाती। मसलन, किसी युवक को सरकारी त्रुटि के कारण ‘चंपाबेन’ नाम दे दिया जाए, और उसे महिला लाइन में खड़ा होना पड़े। वह युवक यह कह सकता है कि वह पुरुष है, लेकिन उसका नाम चंपाबेन है, इसलिए उसे महिला लाइन में खड़ा किया गया।
सरकार द्वारा नामकरण की व्यवस्था से छगन और उज्जी जैसे स्थानीय नामों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल जाती। यदि कोई लोकप्रिय नाम लेने के लिए लोग दावा करें, तो नामों की नीलामी की व्यवस्था भी जामानी पड़ती। उदाहरण के लिए, दक्षिण के किसी धनाढ्य व्यक्ति ने अपने बेटे का नाम ‘सवजी’ रखने के लिए पचास लाख रुपये खर्च किए हों!
कुछ लोग नाम बदलने के लिए अदालत का सहारा ले सकते। ऐसे मामलों में अदालत का फैसला आने तक उन्हें अस्थायी नाम दिया जा सकता है। और इनमे से यदि किन्ही बच्चों का ऑनलाइन नाम नहीं आ रहा होता तो उसे ऑफलाइन फॉर्म भरकर अपना नाम लेना पड़ता। यह बात सोचकर ही आप मन ही मन में हंस रहे होंगे।
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