26 मार्च 2025 को मैक्स महाराष्ट्र हिंदी के मंच से जावेद अख्तर ने एक ऐसा भाषण दिया जिसने सोचने पर मजबूर कर दिया। उनका यह वक्तव्य केवल एक बयान नहीं था, बल्कि एक विचार क्रांति का आगाज़ था। एक ऐसे समय में जब लोग अपने विचारों को छुपाने में ही भलाई समझते हैं, जावेद साहब ने निडर होकर कहा –
“मैं नास्तिक हूँ, लेकिन मेरी अंतरात्मा जिंदा है। मैं आँखें मूंदकर किसी को नहीं मानता, लेकिन दिल से इंसानियत को मानता हूँ।”
यह पंक्ति सीधे दिल को छू जाती है। उन्होंने साफ शब्दों में यह बात रखी कि आस्था और अंधभक्ति में बहुत फर्क होता है। जहां आस्था सवाल करने से नहीं डरती, वहीं अंधभक्ति सवालों से भागती है।
उनकी बातें कहीं किसी को चुभ सकती हैं, तो कहीं किसी को राहत भी दे सकती हैं – क्योंकि वे उन भावनाओं को स्वर देते हैं जो अक्सर दबा दी जाती हैं। जावेद साहब का मानना है कि धर्म से पहले इंसानियत का धर्म आता है।
उन्होंने कहा “जो व्यक्ति अपने विवेक से सोचता है, वह सच के करीब होता है। और जो सिर्फ डर से किसी विचार को मानता है, वह सिर्फ भीड़ का हिस्सा बन जाता है।”
जावेद अख्तर को यूँ ही सबसे बुद्धिजीवी लेखकों, दार्शनिकों और विचारकों में नहीं गिना जाता। उनके शब्द न केवल तार्किक होते हैं बल्कि भावनाओं से भी भरे होते हैं। इस भाषण में उन्होंने धर्म, आस्था, तर्क और इंसानियत के बीच संतुलन की बात की – बिना किसी डर के।
यह भाषण न केवल युवाओं को सोचने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि समाज को भी एक नया आईना दिखाता है।

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