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तीसरी बार बेटी होने पर पति की हैवानियत, पत्नी को जलाया जिंदा !

परभणी (महाराष्ट्र): 26 दिसंबर की रात महाराष्ट्र के परभणी में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे इलाके को सन्न कर दिया। एक पति ने सिर्फ इस कारण अपनी पत्नी को जिंदा जला दिया क्योंकि तीसरी बार भी उसकी पत्नी ने बेटी को जन्म दिया था। इस क्रूरतम कृत्य में एक महिला ने अपनी जान गंवाई, जबकि उसके दर्दनाक अंतिम क्षणों का दृश्य हर किसी के दिल को हिला देने वाला था।

घटना का विवरण

रात लगभग 8 बजे, कुंडलिक काले नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को आग लगा दी। आग की लपटों में घिरी महिला जब सड़क पर दौड़ती हुई दिखाई दी, तो वहां से गुजर रहे कुछ लोगों ने तुरंत उसकी मदद करने की कोशिश की। उन्होंने कंबल और पानी से आग बुझाने का प्रयास किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। महिला की दर्दनाक मौत ने सबको स्तब्ध कर दिया।

पुलिस के अनुसार, कुंडलिक काले अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ परभणी के फ्लाईओवर इलाके में रहता था। कुछ दिन पहले वह तीसरी बार पिता बना था और इस बार भी एक बेटी पैदा हुई थी। अपनी पत्नी से नाराज होकर उसने यह घिनौना कदम उठाया, जो उसकी बेरहम मानसिकता को उजागर करता है।

ऐसे अपराध एक सवाल उठाते हैं ,क्या समाज में एक महिला का जीवन इतना सस्ता हो गया है कि उसे केवल इस कारण मौत के घाट उतार दिया जाए क्योंकि उसने एक बेटी को जन्म दिया?इस घटना का CCTV फुटेज सामने आने के बाद, आरोपित कुंडलिक को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और मामले की जांच जारी है। मृतक महिला की बहन ने आरोपी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कराया है।

एक और दिल दहलाने वाली घटना

महाराष्ट्र के बाद, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से भी एक ऐसी ही दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसमें प्रीति सिंह नाम की महिला पर उसके ससुरालवालों ने दो बार तेजाब से हमला किया। प्रीति की शादी के बाद, उसके ससुरालवाले बेटी के जन्म से नाखुश थे और पहले भी उसने तेजाब से हमला किया था। इसके बाद भी, जब प्रीति ने बेटे को जन्म दिया, तो दहेज के लालच में उसके साथ और भी क्रूरता की गई। यह दूसरी बार था जब उसने एसिड अटैक का शिकार हुई थी।

मूल्यांकन और समाज का दायित्व

यह दोनों घटनाएँ केवल एक महिला के प्रति क्रूरता की कहानी नहीं हैं, बल्कि एक समाज के मुँह पर तमाचा भी हैं, जो महिला के अधिकारों और गरिमा को ठुकराता है।

समाज और कानून के बीच की खाई

इन दोनों घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक समाज में गहरी मानसिकता का परिवर्तन नहीं होता, तब तक कानूनी और सामाजिक उपाय सिर्फ कागजी होंगे। दहेज प्रथा और महिला के प्रति असम्मान की घटनाएँ लगातार घटित हो रही हैं, और इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरूरत है। सिर्फ़ महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून को सशक्त बनाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें समाज में समानता और सम्मान की संस्कृति का निर्माण करना होगा।

आखिरकार, क्या समाधान है?

समाज में मानसिकता को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है। महिलाओं को केवल उनके जन्म या परिवार में भूमिका के आधार पर ही नहीं, बल्कि उनके व्यक्तित्व, उनके संघर्ष, और उनकी मेहनत के लिए भी सम्मानित किया जाना चाहिए। जब तक हम समाज में यह बदलाव नहीं लाते, तब तक हम ऐसे जघन्य अपराधों की रोकथाम करने में सफल नहीं हो सकते।