Swastika History: स्वास्तिक, जो चारों ओर मुड़े हुए हाथों वाला एक क्रॉस है, भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से शुभता और समृद्धि का प्रतीक रहा है। यह न केवल भारतीय संस्कृति बल्कि दुनिया भर में अनेक सभ्यताओं में एक पवित्र प्रतीक के रूप में पहचाना गया है। हालांकि, 20वीं सदी में यह प्रतीक नाजी पार्टी का चिन्ह बन गया और इसे नफरत, नस्लीय भेदभाव और हिंसा के प्रतीक के रूप में जाना जाने लगा। आइए जानें, यह पवित्र प्रतीक नाजी विचारधारा से कैसे जुड़ा।
स्वास्तिक शब्द संस्कृत के “स्वस्ति” से निकला है, जिसका अर्थ है “कल्याणकारी” या “मंगलकारी”। यह प्रतीक प्राचीन भारतीय धर्मों – हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म – में शुभता, समृद्धि और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है।
स्वास्तिक का इतिहास
स्वास्तिक का सबसे प्राचीन उदाहरण लगभग 15,000 वर्ष पुराना है, जिसे 1908 में यूक्रेन में एक हाथी दांत की मूर्ति पर खोजा गया। प्राचीन सभ्यताओं जैसे कि मेसोपोटामिया, ग्रीस, रोम, और सेल्टिक कला में भी यह पाया गया। भारत में, यह प्रतीक सूर्य देवता और देवी काली से संबंधित है। दाहिनी ओर मुड़ा हुआ स्वास्तिक (सूर्य का प्रतीक) शुभता और प्रकाश का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि बाईं ओर मुड़ा हुआ स्वास्तिक (सौवस्तिक) रात्रि और देवी काली से जुड़ा है।
स्वास्तिक और जर्मन राष्ट्रवाद
19वीं सदी के अंत में, जर्मन पुरातत्त्ववेत्ता हेनरिक श्लीमन ने प्राचीन ट्रॉय शहर की खुदाई के दौरान लगभग 1,800 स्वास्तिक प्रतीक खोजे। उन्होंने इसे अपने “प्राचीन आर्य पूर्वजों” का धार्मिक चिन्ह बताया। इसके साथ ही, संस्कृत भाषा और जर्मन भाषा की समानताओं के आधार पर यह दावा किया गया कि आर्य नस्ल जर्मनी से निकली थी।
आर्य शब्द संस्कृत के “आर्य” से आया है, जिसका अर्थ है “आदर योग्य” या “श्रेष्ठ”। लेकिन 19वीं और 20वीं सदी में इस शब्द को नस्लीय शुद्धता के प्रतीक के रूप में तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। जर्मन राष्ट्रवादियों ने स्वास्तिक को आर्य नस्ल की श्रेष्ठता और अपनी संस्कृति का प्रतीक माना।
नाजी प्रतीक के रूप में स्वास्तिक का चयन
1920 में, जब हिटलर ने नाजी पार्टी की नींव रखी, तो उन्होंने स्वास्तिक को पार्टी के झंडे का हिस्सा बनाया। यह झंडा लाल रंग (सामाजिक विचार), सफेद (राष्ट्रीयता) और काले स्वास्तिक (आर्य नस्ल की विजय) का प्रतीक था। हिटलर ने इसे व्यक्तिगत रूप से डिज़ाइन किया और इसे जर्मन गौरव और नाजी विचारधारा का प्रतीक बना दिया।
15 सितंबर 1935 को, नाजी झंडे को जर्मनी का आधिकारिक झंडा घोषित किया गया। उसी दिन नस्लीय कानून भी पारित किए गए, जिन्होंने यहूदी और जर्मन लोगों के बीच विवाह और नागरिकता को प्रतिबंधित कर दिया।
आधुनिक युग में स्वास्तिक: विवाद और धार्मिक महत्व
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जर्मनी में स्वास्तिक के सार्वजनिक प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पश्चिमी देशों में इसे नफरत और हिंसा का प्रतीक माना गया। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में यह अभी भी शुभता और धार्मिक महत्व का प्रतीक है।
भारतीय परंपराओं में स्वास्तिक
हिंदू धर्म में, स्वास्तिक का उपयोग घरों, मंदिरों, और शुभ कार्यों में किया जाता है। दिवाली जैसे त्योहारों में इसे रंगोली और दीपों के साथ दर्शाया जाता है। जैन धर्म में यह 24 तीर्थंकरों में से एक का प्रतीक है और बौद्ध धर्म में यह बुद्ध के चरणचिह्नों को दर्शाता है।
2007 में, जब जर्मनी ने यूरोपीय संघ में स्वास्तिक पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, तो भारतीय धार्मिक समुदायों ने इसका विरोध किया।
स्वास्तिक: एक प्रतीक, दो विचारधाराएं
स्वास्तिक एक ऐसा प्रतीक है, जो शुभता और बुराई दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्राचीन सभ्यताओं और आधुनिक समाज के बीच सांस्कृतिक और वैचारिक संघर्ष का प्रतीक है।
क्या इसे नाजी विचारधारा से अलग कर पुनः शुभता का प्रतीक बनाया जा सकता है? यह प्रश्न आज भी बहस का विषय है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि स्वास्तिक मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण और जटिल हिस्सा है, जो हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करता रहेगा।
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