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homai vyarawalla

Homai Vyarawalla: भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट की अनोखी कहानी

बचपन में जब कोई फोटोग्राफर तस्वीर खींचता था, तब होमाई व्यारावाला की नजरें उसके चेहरे पर और कान कैमरे की क्लिक पर टिके रहते थे। फोटोग्राफी के प्रति उनका यह जुनून आगे चलकर उन्हें भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट बना देगा, यह शायद किसी ने नहीं सोचा होगा।

होमाई का जन्म 1913 में गुजरात के नवसारी में हुआ था। जब वे 13 वर्ष की थीं, तब उनका परिवार मुंबई आ गया। यहीं उनकी मुलाकात एक पारसी मित्र से हुई, जिसने उन्हें फोटोग्राफी की शुरुआती जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने मुंबई की प्रसिद्ध जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से फोटोग्राफी में डिप्लोमा प्राप्त किया और अपने करियर की शुरुआत की।

उनकी शादी मानेकशा व्यारावाला से हुई, जो एक न्यूज फोटोग्राफर थे। उनके माध्यम से होमाई ने न्यूज फोटोग्राफी के क्षेत्र में कदम रखा। उस दौर में यह क्षेत्र पुरुषों के अधिपत्य में था, लेकिन अपनी अनूठी प्रतिभा और मेहनत से उन्होंने खुद को इस क्षेत्र में स्थापित किया और ऊंचा मुकाम हासिल किया।

ऐतिहासिक क्षणों को कैमरे में कैद करने वाली अद्भुत फोटोग्राफर

होमाई व्यारावाला ने भारतीय इतिहास के कई महत्वपूर्ण पलों को अपने कैमरे में कैद किया। उनकी फोटोग्राफी इतनी प्रभावशाली थी कि सरदार वल्लभभाई पटेल से लेकर इंदिरा गांधी तक कई नेता उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते और सम्मान देते थे। सरदार पटेल तो उन्हें प्यार से “हमारी गुजरातन” कहकर पुकारते थे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विद्वान राष्ट्रपति भी उनकी अनुपस्थिति को नोटिस करते थे और पूछते थे कि “होमाई कहां हैं?” उनकी गरिमामयी उपस्थिति और उत्कृष्ट काम की वजह से उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं में फोटो जर्नलिस्ट के रूप में आमंत्रित किया जाता था।

  • गांधी जी की अंतिम यात्रा,

  • 1947 में ऐतिहासिक ध्वजारोहण,

  • नेहरू परिवार की निजी पार्टियां,

  • महान राजनीतिक हस्तियों की मुलाकातें,

  • 1953 में जब हेलन केलर ने नेहरू जी से मुलाकात की

इन सभी ऐतिहासिक क्षणों को उन्होंने अपने कैमरे में अनोखे अंदाज में कैद किया।

उनकी एक बेहद प्रसिद्ध तस्वीर नेहरू जी की ‘फोटोग्राफी नॉट अलाउड’ बोर्ड के पास खड़े होने की है, जिसमें नेहरू जी मुस्कुराते हुए कैमरे की ओर देख रहे हैं।

तकनीक की सीमाओं के बावजूद बेहतरीन फोटोग्राफी

आज जब मोबाइल कैमरा हर किसी के हाथ में है, तब भी सही एंगल और लाइटिंग के बिना बेहतरीन तस्वीरें लेना चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन 1940-50 के दशक में, जब तकनीकी सुविधाएं सीमित थीं, तब भी होमाई व्यारावाला ने अद्भुत तस्वीरें खींची।

गांधी जी की अंतिम यात्रा की तस्वीर में सैकड़ों लोगों की भीड़ में भी चेहरे स्पष्ट दिखते हैं। यह उनकी उत्कृष्ट फोकसिंग तकनीक और कैमरा नियंत्रण की क्षमता को दर्शाता है। उनके समय के बड़े-बड़े फोटोग्राफर भी इस स्तर की तस्वीरें लेने में कठिनाई महसूस करते थे।

उनकी खासियत थी कि वे “कैंडिड फोटोग्राफी” में माहिर थीं। जब व्यक्ति अपने सामान्य व्यवहार में होता था, बिना कैमरे की उपस्थिति को महसूस किए, तब खींची गई तस्वीरें ज्यादा वास्तविक और प्रभावशाली होती थीं।

फोटोग्राफी छोड़ने का फैसला

1970 में जब उनके पति का निधन हुआ, तब उन्होंने देखा कि नई पीढ़ी के फोटोग्राफर्स में अनुशासन और गंभीरता की कमी थी। इससे निराश होकर उन्होंने फोटोग्राफी छोड़ दी और अगले 40 वर्षों तक कैमरा तक नहीं उठाया

उन्होंने अपनी सारी तस्वीरों का संग्रह दिल्ली स्थित अल्काजी फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स को सौंप दिया। उनके भव्य इतिहास को संजोने वाली यह तस्वीरें आज भी भारतीय इतिहास का अमूल्य धरोहर हैं।

सरल जीवन और अनोखी प्रतिभा

फोटोग्राफी के अलावा भी होमाई व्यारावाला की कई अन्य रुचियां थीं। वे इकेबाना (फूलों की जापानी सजावट कला), कुकिंग, और वेस्ट मटेरियल से नए आइटम बनाने में भी निपुण थीं। वे बेकार चीजों में भी खूबसूरती देख सकती थीं और उसे नया रूप दे सकती थीं।

  • उन्होंने गुलाब से गुलकंद बनाना सीखा, क्योंकि उन्हें फूलों की बर्बादी पसंद नहीं थी।

  • पुराने टायर ट्यूब से उन्होंने अपने लिए अनोखी चप्पलें बना लीं।

  • ओवन की बड़ी ट्रे को काटकर छोटी बना ली, और ऐसा किया कि कोई पहचान भी न सके कि यह ट्रे पहले बड़ी थी।

जीवन के अंतिम वर्षों में भी ऊर्जा से भरपूर

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी वे उत्साह से भरी रहीं। जब उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में भाषण देने के लिए बुलाया गया, तो उन्होंने नया पासपोर्ट बनवाया और मजाक में कहा, “अब तो मुझे पासपोर्ट की पूरी वैधता तक जिंदा रहना ही पड़ेगा!”

वे अकेली थीं, लेकिन अकेलापन उन्हें कभी नहीं खलता था। वे कहा करती थीं, “भगवान ने मुझे इस दुनिया में भेजा है, तो मेरी देखभाल करने की जिम्मेदारी भी उसी की है।”

वे 98 वर्ष की उम्र में 2012 में इस दुनिया से विदा हो गईं, लेकिन उनकी फोटोग्राफी और व्यक्तित्व की छाप हमेशा बनी रहेगी।

भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट को सलाम!

भारत सरकार ने उन्हें 2011 में “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया। उन्हें “फर्स्ट लेडी ऑफ लेंस” कहा गया। उनके फोटो “डालडा 13” नाम से प्रसिद्ध हुए, क्योंकि

  • उनका जन्म 1913 में हुआ था,

  • 13 वर्ष की उम्र में अपने पति से मिली थीं,

  • उनकी पहली कार का नंबर भी DLD 13 था।

होमाई व्यारावाला का जीवन सिर्फ एक फोटोग्राफर का नहीं, बल्कि एक सृजनशील, अनुशासित और जिंदादिल महिला का जीवन था। उनकी फोटोग्राफी सिर्फ तस्वीरें नहीं थीं, बल्कि भारत के इतिहास का आईना थीं

होमाई व्यारावाला को नमन!