आज भारत अपने स्वतंत्रता के 76 साल पूरे कर चुका है। लेकिन, आजादी के इतने सालों बाद भी यहां हर वर्ग को अपने हिसाब से जीने की स्वतंत्रता नहीं दी गई है। हमारे देश में यूं तो महिलाएं आजाद हैं। वे सब कर सकती हैं जो वो करना चाहती हैं। अपने मन चाहे कपड़े पहनने के लिए, अपनी पसंद का खाना खाने के लिए, घूमने के लिए और अपने हिसाब से जीवन साथी चुनने के लिए। लेकिन, इन आजाद महिलाओं में केवल उनकी गिनती की जाती है जो किसी पढ़े-लिखे या किसी अर्बन क्लॉस सोसायटी से आती हैं। जी हां असल हकीकत यहीं हैं। हमारे देश में ऐसे कई शहर हैं जहां की महिलाओं को ये अधिकार प्राप्त नहीं हैं। आज भी कई महिलाएं घूंघट की आड़ में जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। आज हम बुर्खा या हिजाब पर उंगली उठाने से पहले हमारे समाज में चल रही घूंघट और पर्दा प्रथा पर भी नजर डालेंगे।
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राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार सहित और न जाने कितने ही राज्यों में हिंदू धर्म की महिलाओं को शादी के बाद घूंघट करने का चलन है। वहीं बात करें मुसलिम वर्ग की तो इस्लाम में लड़कियों से लेकर महिलाओं तक को बुर्खा पहनने की प्रथा है। लेकिन, यहां सवाल ये उठता है कि भारत में इस पर्दा प्रथा की शुरुआत कैसे हुई ?
ईसा से 500 वर्षों पहले तब कहीं भी पर्दा प्रथा का कोई जिक्र नहीं है। तो वहीं प्रचीन वेदों और धर्म ग्रंथों में भी कहीं पर्दा प्रथा का कोई विवरण नहीं मिलता है। यहां तक की रामायण और महाभारत में भी स्त्रियों के पर्दा करने को लेकर कोई बात नहीं की गई है। इसके अलावा हजारों साल पुराने अजंता और खजुराहों की कलाकृतियों में भी महिलाओं को बिना घूंघट के दिखाया गया है। हालांकि जातक रचनाओं में कहीं-कहीं औरतों को पर्दे में रहने का उल्लेख मिलता है।
कई बुद्धि जीवियों की मानें तो पर्दा प्रथा का चलन भारत में मुगलों के आने के बाद शुरू हुआ। दरअसल, पर्दा एक इस्लाम शब्द है जो कि अरबी और फारसी भाषा से आया है। इसका सीधा सा मतलब होता है ढकना या अलग करना।
अब बात आती है इसके चलन के पीछे की वजह क्या थी? मुगलों के भारत में आने के बाद महिलाओं में बलात्कार जैसे अपराध बढ़ने लगे थे। धीरे-धीरे स्त्रियों की आबरू को बुरी नजरों से बचाने के लिए बुर्खा और घूंघट का चलन जोरों से बढ़ने लगा इसके बाद जैसे-जैसे वक्त बीतता गया वैसे-वैसे लोगों ने इसे परंपरा के नाम पर अपनाना शुरू कर दिया। शुरुआत में महिलाओं ने इस प्रथा का काफी समर्थन किया और परंपरा मान कर सिर पर पल्ला या घूंघट करना अपना मान समझ लिया।
पर्दा प्रथा का मतलब है कि अपने चेहरे को ढक कर रखना जिससे कोई पुरुष उसका मुह न देख सके। यह प्रथा हिंदू धर्म में स्त्रियों के चरित्र और संस्कार को प्रदर्शित करती है। इतना ही नहीं जो औरते इन परंपराओं को नहीं मानती उन्हें समाज द्वारा चरित्रहीन और बद्चलन तक मान लिया जाता है। भले ही इस प्रथा के चलते किसी को शारीरिक या मानसिक नुकसान नहीं पहुंचता, लेकिन महिलाओं के आगे बढ़ने के लिए ये प्रथा एक रोड़ा बनकर जरूर उभरती है।
लेकिन, आज के वक्त में कहीं न कहीं औरतों ने इस प्रथा को न अपना कर अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया है। पर्दा प्रथा ही नहीं बल्कि हमारे समाज में कई ऐसी रूढ़ी वादी प्रथाएं हैं जिन्हें पीछे छोड़कर महिलाएं आसमान छू रही हैं। जिसके कितने ही उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं देश की पहली महिला अभिनेत्री दुर्गा बाई कामत से लेकर पहली महिला आईपीएस किरण बेदी तक न जाने कितनी ऐसी औरते हैं जिन्होंने समाज की इन रूढ़ी वादी परंपराओं से उठ कर पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन किया है।
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