अहमदाबाद: ममता का पुतला जला, पुलिस से झड़प
अहमदाबाद के सुभाष ब्रिज पर आज सुबह से ही VHP और बजरंग दल के कार्यकर्ता इकट्ठा हुए। जैसे-जैसे विरोध तेज़ हुआ, ममता बनर्जी का पुतला लाकर आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हल्की झड़प भी हुई। पुलिस ने स्थिति संभालते हुए कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया। हालांकि, प्रदर्शनकारियों के उत्साह में कोई कमी नहीं दिखी।
वडोदरा: राष्ट्रपति शासन की मांग के साथ गूंजे ‘जय श्री राम’ के नारे
वडोदरा में VHP ने पोस्टर-बैनर के साथ विशाल रैली निकाली जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग करते हुए यह रैली कलेक्टर कार्यालय पहुँची, जहाँ ‘रामधुन’, ‘हनुमान चालीसा’ और ‘जय श्री राम’ के नारों ने माहौल को भगवामय कर दिया। पुलिस ने पूरे मार्ग पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
राजकोट: NIA जांच की मांग, बांग्लादेशी घुसपैठ पर नाराज़गी
राजकोट में भी विरोध प्रदर्शन ने ज़ोर पकड़ा। मुर्शिदाबाद में हुई हिंदुओं की निर्मम हत्या और विस्थापन को लेकर VHP ने NIA से जांच की माँग रखी और बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ पर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए। VHP के प्रतिनिधियों ने ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि यदि सरकार खुद मानती है कि इसमें विदेशी तत्वों का हाथ है, तो जांच एजेंसी को सक्रिय क्यों नहीं किया जा रहा?
समाजसेवियों पर भी लगी रोक, पीड़ितों को लौटने पर मजबूर किया जा रहा
VHP नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि जो समाजसेवी संस्थाएँ पीड़ितों की मदद करने आगे आईं, उन्हें भी राज्य सरकार द्वारा रोक दिया गया। पीड़ितों को ज़बरदस्ती वापस मुर्शिदाबाद भेजा जा रहा है, जहाँ उनकी जान को खतरा है। सरकार की यह नीति “एक जख्मी को फिर से रणभूमि में धकेलने” जैसी है।
यह केवल विरोध नहीं, चेतावनी है
देश में जब भी एक खास समुदाय पर हमला होता है, पूरा समाज खड़ा हो जाता है। लेकिन जब हिंदू समुदाय के साथ कुछ होता है, तो बहुत से राजनीतिक दल मौन धारण कर लेते हैं। यह प्रदर्शन केवल आक्रोश की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि ममता सरकार और केंद्र दोनों के लिए चेतावनी है। अगर हिंदू समाज को न्याय नहीं मिला, तो आने वाले दिनों में यह विरोध सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं रहेगा, यह चुनावी नतीजों में भी परिलक्षित होगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि यदि राज्य सरकारें तटस्थता नहीं बरतेंगी और वोटबैंक की राजनीति में न्याय को कुचलती रहेंगी, तो जनता स्वयं आगे आकर आवाज़ उठाएगी। अब देखना यह है कि ममता बनर्जी सरकार इस बढ़ते विरोध को कैसे संभालती है — समझदारी से या दमन से?
“अब यह केवल बंगाल की बात नहीं, यह राष्ट्र के मूल स्वरूप पर चोट है — और राष्ट्र जाग चुका है।”
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