महाराष्ट्र में इन दिनों गुलेन-बेरी सिंड्रोम (GBS) नामक एक दुर्लभ बीमारी ने हड़कंप मचा रखा है। इस बीमारी के कारण अब तक 10 लोगों की मौत हो चुकी है और मामले लगातार बढ़ रहे हैं। GBS एक ऑटो-इम्यून डिसीज है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद की नसों पर हमला करती है। आमतौर पर इस बीमारी का प्रकोप बहुत कम होता है — एक लाख लोगों में से केवल एक या दो को यह होता है। लेकिन अब तक लगभग 200 मामले सामने आ चुके हैं और यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।
फिलहाल महाराष्ट्र के पुणे और आसपास के इलाकों में GBS को लेकर लोगों में डर का माहौल है। गुजरात में भी इसके कुछ मामले सामने आए हैं।
क्या है गुलेन-बेरी सिंड्रोम (GBS)?
गुलेन-बेरी सिंड्रोम एक दुर्लभ तंत्रिका संबंधी विकार है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से तंत्रिकाओं पर हमला करती है। इस बीमारी में पहले पैरों में अचानक सुन्नता, झनझनाहट और कमजोरी महसूस होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर पूरे शरीर को प्रभावित कर सकती है। समय पर इलाज न मिलने पर मरीज को लकवा (पैरालिसिस) भी हो सकता है। हालांकि, ज्यादातर लोग इलाज से ठीक हो जाते हैं।
इस बीमारी की शुरुआत अक्सर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद होती है। ‘कैम्पाइलोबैक्टर जेजुनी’ नामक बैक्टीरिया, जो अधपके चिकन में पाया जाता है, इसके मुख्य कारणों में से एक है। इसके अलावा, इन्फ्लुएंजा, एपस्टीन-बार वायरस और एचआईवी जैसे वायरस भी GBS का कारण बन सकते हैं।
कैसे पड़ा नाम ‘गुलेन-बेरी’?
गुलेन-बेरी सिंड्रोम का नाम फ्रांसीसी डॉक्टरों गुइलैन और बैरी के नाम पर रखा गया, जिन्होंने 1916 में सबसे पहले ब्रिटिश सैनिकों में इस बीमारी के लक्षणों को देखा और इसका अध्ययन किया।
GBS के लक्षण और प्रकार
मुख्य लक्षण:
- पैरों और हाथों में झनझनाहट और सुन्नता
- मांसपेशियों में अचानक कमजोरी
- चलने, बोलने, चबाने और निगलने में दिक्कत
- सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी
- हृदय गति और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव
प्रकार:
- एक्यूट इंफ्लेमेटरी डिमाइलिनेटिंग पोलीराडिक्युलोन्यूरोपैथी (AIDP): सबसे सामान्य प्रकार, जिसमें मांसपेशियों की कमजोरी नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती है।
- मिलर फिशर सिंड्रोम: इसमें आंखों की मांसपेशियों पर प्रभाव पड़ता है और शरीर असंतुलित हो जाता है।
- एक्यूट मोटर और मोटर-सेंसरी एक्सोनल न्यूरोपैथी: इसमें मांसपेशियों की कमजोरी और संवेदनशीलता पर असर होता है।
GBS का निदान और उपचार
निदान: GBS का निदान करना शुरुआती चरण में कठिन हो सकता है क्योंकि इसके लक्षण अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से मिलते-जुलते हैं। इसके लिए कुछ विशेष परीक्षण किए जाते हैं:
- स्पाइनल टैप (लंबर पंचर): रीढ़ की हड्डी से द्रव लेकर परीक्षण किया जाता है।
- इलेक्ट्रोमायोग्राफी (EMG): मांसपेशियों की विद्युत गतिविधि मापी जाती है।
- नर्व कंडक्शन स्टडी: तंत्रिकाओं के संकेतों की गति मापी जाती है।
उपचार: GBS का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन कुछ थेरेपी इसके लक्षणों को कम कर सकती हैं:
- प्लाज्मा एक्सचेंज (प्लाज्माफेरेसिस): खून से हानिकारक एंटीबॉडी हटाई जाती हैं।
- इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी: स्वस्थ एंटीबॉडी दिए जाते हैं, जो हानिकारक एंटीबॉडी को निष्क्रिय करते हैं।
- फिजियोथेरेपी: मांसपेशियों को मजबूत बनाने और थकान से बचाने के लिए।
GBS के मामले और सावधानियां
महाराष्ट्र के पुणे और मुंबई में GBS के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मुंबई में BMC के 53 वर्षीय कर्मचारी सुभाष देटे की मौत GBS के कारण हुई। पुणे के बारामती में 20 वर्षीय किरण देशमुख की पानीपुरी खाने के बाद इस बीमारी से मौत हो गई। माना जा रहा है कि अस्वच्छ खाना और पानी इस बीमारी के प्रसार का बड़ा कारण है।
सावधानियां:
- साफ-सफाई का ध्यान रखें और अधपके भोजन से बचें।
- त्वरित इलाज के लिए लक्षणों पर ध्यान दें, जैसे अचानक कमजोरी या झनझनाहट।
- स्वास्थ्य विभाग ने सलाह दी है कि बुखार, दस्त या मांसपेशियों में कमजोरी होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
गुलेन-बेरी सिंड्रोम भले ही एक दुर्लभ बीमारी हो, लेकिन समय पर इलाज और सही जानकारी से इसके खतरे को कम किया जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वे इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए त्वरित कदम उठाएं और लोगों को जागरूक करें।
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