छोटे बच्चों और किशोरों में ऑनलाइन समय बिताने की बढ़ती प्रवृत्ति अब एक सामाजिक समस्या बन गई है। यह समस्या किसी एक देश या महाद्वीप तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में व्यापक है। धर्म, संस्कृति, या परंपराएं चाहे जितनी अलग हों, लेकिन माता-पिता की चिंताएं लगभग समान हैं।
ग्रीस का ‘किड्स वॉलेट’ ऐप
ऑस्ट्रेलिया की तरह, ग्रीस ने भी बच्चों को इंटरनेट की लत छुड़ाने और उसके उपयोग को नियंत्रित करने के लिए मार्च 2025 तक ‘ग्रीस किड्स वॉलेट’ ऐप लॉन्च करने की घोषणा की है। इस ऐप के जरिए मोबाइल ब्राउजिंग की सीमा तय की जाएगी और बच्चों की उम्र की पुष्टि की जाएगी। माता-पिता यह निर्धारित कर सकेंगे कि बच्चे किन वेबसाइट्स और सामग्रियों तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेही निभाने के लिए बाध्य किया जाएगा। हालांकि, इस कदम को बच्चों की स्वतंत्रता, गोपनीयता, और अभिव्यक्ति पर आघात मानते हुए आलोचना भी की जा रही है। ग्रीस के प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोताकिस का कहना है कि यह कदम बच्चों के दिमाग पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को रोकने के लिए उठाया गया है।
ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के कदम
ऑस्ट्रेलिया ने नवंबर 2024 में एक कानून पारित कर 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाया। कानून का उल्लंघन करने वालों पर 5 करोड़ डॉलर का जुर्माना तय किया गया है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने इसे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कदम बताया।
दक्षिण कोरिया में ऑनलाइन मल्टीप्लेयर गेम्स बहुत लोकप्रिय हैं। 2011 में यहां ‘शटडाउन कानून’ लागू किया गया, जिसमें 16 वर्ष से कम उम्र के किशोरों को रात 12 बजे से सुबह 6 बजे तक वीडियो गेम खेलने की मनाही थी। हालांकि, 2021 में यह कानून खत्म कर दिया गया, लेकिन सरकार ने एक प्रणाली विकसित की है जो इंटरनेट पर छह घंटे से अधिक गेम खेलने वाले बच्चों की इंटरनेट स्पीड धीमी कर देती है।
चीन में 2007 से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रतिदिन तीन घंटे से कम समय के लिए गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वहीं, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को टिकटॉक के चीनी संस्करण डोयिन पर 40 मिनट से अधिक समय बिताने की अनुमति नहीं है। फ्रांस ने सोशल मीडिया खातों पर आयु सत्यापन लागू करने का प्रस्ताव दिया है।
अमेरिका में फ्लोरिडा ने 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट पर माता-पिता की अनुमति के बिना प्रतिबंध लगाने के लिए मार्च 2024 में एक बिल पारित किया।
बच्चों पर ऑनलाइन प्रभाव
ऑनलाइन गतिविधियों की बढ़ती प्रवृत्ति ने बच्चों के पारिवारिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। इंटरनेट का उपयोग करने से मना करने पर बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं। मोबाइल से दूर करने पर घर में अशांति की स्थिति पैदा हो जाती है। स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की आंखों की सेहत पर भी असर पड़ रहा है। मायोपिया (दूर की चीजें न देख पाने की समस्या) तेजी से बढ़ रही है। 2050 तक 40% बच्चों में यह समस्या होने का अनुमान है।
अमेरिका में हुए एक सर्वे के अनुसार, 9 से 12 वर्ष के 76% बच्चे व्यक्तिगत डिवाइस से इंटरनेट का उपयोग करते हैं। इनमें से 22% बच्चे अनुचित सामग्री देखते हैं।
समाधान और भविष्य
ऑनलाइन शिक्षा, विज्ञान, व्यापार, और अन्य क्षेत्रों में इंटरनेट ने क्रांति लाई है, लेकिन बच्चों के लिए इसका उपयोग कितना आवश्यक है, यह बहस का विषय है। बच्चों को इंटरनेट से दूर रखने की कोशिशों के बावजूद, माता-पिता और समाज को उनकी मानसिक और शारीरिक भलाई के लिए सजग रहना चाहिए।
ग्रीस और ऑस्ट्रेलिया का मानना है कि बच्चों की सुरक्षा प्राथमिकता है। अगर ये प्रयास सफल होते हैं, तो यह अन्य देशों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।
More Stories
गणतंत्र दिवस 2025: कर्तव्य पथ पर भारतीय शौर्य की गूंज, अपाचे-राफेल की गर्जना और 5 हजार कलाकारों का अनूठा संगम
‘स्काई फोर्स’ ने 36.80 करोड़ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया: वीर पहाड़िया ने किया धमाकेदार डेब्यू, सोशल मीडिया पर छाए
पद्म श्री से सम्मानित हुए प्रोफेसर रतन परिमु