गार्ड ऑफ ऑनर और अंतिम संस्कार
मनमोहन सिंह को निगमबोध घाट पर गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। तीनों सेनाओं के जवानों ने उनके सम्मान में सलामी दी, जो उनके प्रति देश के सर्वोच्च सम्मान का प्रतीक था। पूर्व प्रधानमंत्री की पार्थिव देह को सुबह उनके निवास से कांग्रेस मुख्यालय लाया गया, जहां उनकी पत्नी गुरशरण कौर और बेटी दमन सिंह ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। इसके बाद, पार्थिव देह को सेना की तोप गाड़ी में रखकर निगमबोध घाट भेजा गया।
मनमोहन सिंह के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और कांग्रेस नेतृत्व के साथ-साथ प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनकी निधन पर केंद्र सरकार ने 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी और कांग्रेस पार्टी ने 3 जनवरी तक सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं।
स्मारक पर विवाद
मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के स्थल पर एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के सम्मान में कोई स्मारक बनाने के लिए भूमि की पहचान तक नहीं की। केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस महासचिव ने कहा, “सरकार ने पूर्व पीएम का स्मारक बनाने के लिए जमीन तक नहीं तलाश की, जो देश के पहले सिख पीएम का अपमान है।”
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से यह मांग की थी कि जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ है, वहां एक स्मारक बनाना चाहिए, ताकि उनकी विरासत को हमेशा याद रखा जा सके। हालांकि, गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि स्मारक के स्थान पर विचार करने में कुछ और समय लगेगा।
डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम हैं। वे भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे, और उनका प्रधानमंत्री पद पर कार्यकाल 10 वर्षों का था, जो कि एक स्थिर और समृद्ध भारत के निर्माण में अहम योगदान था। उनका योगदान विशेष रूप से आर्थिक सुधारों और वैश्विक स्तर पर भारत के प्रभाव को बढ़ाने में उल्लेखनीय था।
मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को उस समय स्थिरता दी, जब भारत वैश्विक वित्तीय संकट से जूझ रहा था। उनके नेतृत्व में भारत ने कई महत्वपूर्ण आर्थिक कदम उठाए, जैसे उदारीकरण और वैश्वीकरण। इसके साथ ही, उनका एक बहुत ही शांत और सादगीपूर्ण व्यक्तित्व था, जो आज भी हमें यह सिखाता है कि असली शक्ति विनम्रता में होती है।
मनमोहन सिंह का निधन भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके समर्पण और योगदान को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि, उनके अंतिम संस्कार को लेकर जो विवाद उठे हैं, वह चिंताजनक है। किसी भी नेता का निधन देश के लिए एक बड़ा दुख होता है, और हमें यह समझना चाहिए कि उन्हें सम्मान देने का तरीका राजनीति से ऊपर होना चाहिए।
मनमोहन सिंह जैसे नेताओं का स्मारक बनाने का मुद्दा एक संवेदनशील विषय है। यह सिर्फ एक व्यक्ति का सम्मान नहीं, बल्कि देश की राजनीति और इतिहास का हिस्सा है। हम सबको यह समझना होगा कि जब हम किसी नेता के योगदान की सराहना करते हैं, तो हमें उनके द्वारा किए गए कार्यों के संदर्भ में निर्णय लेना चाहिए, न कि राजनीति के आधार पर।
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