“जोश और जुनून उम्र का मोहताज नहीं होता, अगर इरादे मजबूत हों तो हर मंजिल हासिल की जा सकती है 93 वर्षीय पानी देवी ने यह साबित कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है। जब उन्होंने अपने जीवन की वृद्धावस्था में कदम रखा, तब भी उनके हौसले जवान थे। तीन स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने न केवल अपना बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया।
संघर्ष से सफलता तक पानी देवी का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। जीवनभर संघर्षों से जूझते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बचपन में खेलों में रुचि थी, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों ने उनके सपनों को सीमित कर दिया। उम्र के साथ उनकी ऊर्जा भले ही कम हुई हो, लेकिन उनका जज़्बा कभी कम नहीं हुआ।
“हवा के रुख़ से डरकर, न बैठ ए मुसाफिर, जो चल सका वही पहुंचा है, मंज़िल के पास जाकर।”
खेलों से नाता 60 की उम्र में उन्होंने अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए दौड़ और अन्य खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। 70 के पार होते-होते वे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगीं। समाज के तानों और शारीरिक सीमाओं को नकारते हुए उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने की ठानी।
तीन स्वर्ण पदकों की गूंज 93 वर्ष की आयु में उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उनकी जीत उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो उम्र को अपनी सीमाओं का कारण मानते हैं।
“उम्र नहीं रोक सकती, जोश का तूफ़ान, पानी देवी की उड़ान ने, रच दिया नया इतिहास।”
प्रेरणा की मिसाल आज पानी देवी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। वे सिखाती हैं कि अगर इरादे मजबूत हों तो किसी भी उम्र में अपने सपनों को जिया जा सकता है। उनकी कहानी हमें यह संदेश देती है कि मेहनत और समर्पण से कुछ भी संभव है।
“संघर्ष ही जीवन है, यही सच्ची पहचान, जो थककर बैठ गए, वो कैसे पाएंगे सम्मान?”
पानी देवी का जीवन एक प्रेरक गाथा है जो हमें बताती है कि असली ताकत हमारे भीतर होती है। अगर हम सच्चे दिल से प्रयास करें, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।

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