CATEGORIES

April 2025
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
282930  
Wednesday, April 16   2:10:00

वडोदरा के इतिहास का स्वर्णिम पन्ना: स्वप्नदृष्टा महाराजा श्रीमंत सर सयाजीराव गायकवाड़

वड़ोदरा के महाराजा सयाजीराव तृतीय के समय काल में वडोदरा शहर ने कई नए आयाम देखें। कई सुधार और तत्कालीन समय के आधुनिकीकरण को देखा। उनकी संगीत, नृत्य, और कला में रुचि ने वडोदरा को विश्व प्रसिद्ध फैकल्टी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स की भेंट दी। 11 मार्च 2024 को, हम महाराजा सर सयाजीराव गायकवाड तृतीय की 161वीं जन्म जयंती मनाते हैं, जिन्होंने बड़ौदा राज्य (वर्तमान वड़ोदरा) को एक आधुनिक और समृद्ध राज्य में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बड़ौदा राज्य की महारानी जमनाबाई ने उन्हें 1875 में बालक रूप में गोद लिया था और उनका नाम बदलकर सयाजीराव रखा था।

  वडोदरा के महाराजा सर सयाजीराव तृतीय ने अपने समय काल में अपनी दूरदर्शिता से बड़ोदरा को कई ने आयाम दिए। जो उस समय की सोच से 50 से अधिक साल तक आगे के थे। उन्होंने वडोदरा के युवकों ,युवतियों को प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए बाहर न जाना पड़े इसलिए यही विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी, महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी की भेंट दी। वहीं वे कलाकारों के भी कदरदान थे। उनके दरबार में संगीतकार,चित्रकार, गायक,नृत्यकार का बहुत ही सम्मानित स्थान था।

   कला के प्रति रुचि जागृत करने के उद्देश्य से उन्होंने सुर सागर के किनारे संगीत विद्यालय बनना की सोची। उस वक्त उन्होंने तत्कालीन उत्तर भारत के प्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद मौला बख्श खां साहब को वडोदरा आने का न्योता दिया। और 26 फरवरी 1886 के रोज उन्होंने संगीत विद्यालय की स्थापना की। यह देश का प्रथम संगीत विद्यालय बना।

   उस्ताद मौला बख्श का हरियाणा के भिवानी में सन1833 को जन्म हुआ। उत्तर भारत के बेहतरीन गायकों में से वे  एक थे ।वे भारतीय शास्त्रीय संगीत और कर्नाटक शैली संगीत के उस्ताद थे। सुर सागर के किनारे स्थापित इस विद्यालय के वे प्रथम आचार्य थे। उन्होंने म्यूजिक नोट्स की विशेष प्रणाली विकसित की। संगीत पर कई रचनाएं लिखी। वे संगीत ही जीते थे ऐसा कहे तो अतिशयोक्ति न होगी। इस संगीत विद्यालय में संगीत ,नृत्य ,नाटक, गायन ,वाद्य ,आदि कलाओं का ज्ञान देना शुरू हुआ ,जो आज भी जारी है ।इस संगीत विद्यालय में दुनिया भर से छात्र कला ज्ञान लेने आते हैं ।

इस विद्यालय से उस्ताद तसदुक हुसैन खां, आफताब ए मौसिकी उस्ताद फैयाज हुसैन खां "रंगीले" , उस्तादअता हुसैन खां "रतनपिया" रामपुरा घराने के उस्ताद निसार हुसैन खां, उस्ताद हजरत इनायत खां और गायन आचार्य पंडित मधुसूदन जोशी जुड़े। उस्ताद इनायत खां  उस्ताद मौला बख्श के पोते थे। इस संगीत विद्यालय से पंडित वी एन भातखंडे भी जुड़े। उन्हें संगीत शिक्षा सिलेबस और संस्थान की ट्रेनिंग प्रणाली को विकसित करने का काम दिया गया ।1916 में ऐतिहासिक संगीत सम्मेलन का नेतृत्व वडोदरा के संगीत विद्यालय ने किया ,जिसके मेजबान महाराजा सयाजीराव तृतीय थे। इस सम्मेलन में 400 देशों ने भाग लिया था। संगीत के डिग्री पाठ्यक्रम में गायन, तबला ,सितार, और दिलरुबा भी जोड़ा गया। महाराजा सयाजीराव गायकवाड तृतीय ने फ्यूजन संगीत और इंडो वेस्टर्न संगीत को भी बढ़ावा दिया।

  उस्ताद मौला बक्श ने अपना पूरा जीवन वडोदरा संगीत विद्यालय को समर्पित किया।आज भी वे वडोदरा की धरती में ही चीर निद्रा में सोए है।उनकी जन्मजयंती पर उनकी मजार पर आज भी संगीत कार्यक्रम कर उन्हे आज की पीढ़ी याद करती है। आज यह संगीत विद्यालय फैकल्टी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स के नाम से जाना जाता है। आज शास्त्रीय कलाओं के अध्ययन के लिए यह श्रेष्ठ संस्थान है। इसकी इमारत भी अपने आप में काष्ठ कला का बेहतरीन उदाहरण है। यहां के वातावरण में 64 कलाएं नृत्य करती सी लगती है।

मल्हारराव होलकर एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने अपनी मालवा की सूबेदारी के दौरान जनहित में अनेकों कार्य किए। पुण्यश्लोका अहिल्याबाई होलकर ने उनके संबल से मालवा राज्य की ऊंचाइयों को नए आयाम दिए।

महाराज सयाजीराव गायकवाड तृतीय की विरासत:

महाराजा सयाजीराव गायकवाड तृतीय एक दूरदर्शी और प्रगतिशील शासक थे जिन्होंने बड़ौदा राज्य को एक आधुनिक और समृद्ध राज्य में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुधार, कला और संस्कृति के क्षेत्र में किए गए योगदान आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी जयंती मनाने का अर्थ है उनकी विरासत को याद रखना और उनके आदर्शों को अपनाना।