22 मार्च वर्ष 2025 हर साल की तरह हम फिर एक बार विश्व जल दिवस मना रहे है आज पूरी दुनिया “विश्व जल दिवस” मना रही है, लेकिन क्या सच में हम पानी बचाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 21 प्रमुख शहर 2030 तक भूजल संकट से जूझ सकते हैं।
इस साल विश्व जल दिवस की थीम #Glacier Prevention
क्या आपको भी पहाड़ों से बहती ठंडी हवा में एक बेचैनी सी महसूस होती है? एक अजीब सी खामोशी? यह वही खामोशी है, जो धीरे-धीरे हिमालय के ग्लेशियरों पर पसरी जा रही है। जो बर्फ कभी हमारी नदियों की जननी थी, आज खुद अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। और अगर हम यही चुप्पी बनाए रखेंगे, तो बहुत जल्द यह खामोशी हमारी आने वाली पीढ़ियों की आवाज़ भी दबा देगी।
ग्लेशियर संरक्षण 2025 का उद्देश्य सिर्फ ग्लेशियरों को बचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी नदियों, हमारे जंगलों, और सबसे महत्वपूर्ण – हमारे भविष्य को सुरक्षित करने की एक मुहिम है। वैज्ञानिकों की मानें तो पिछले 30 सालों में दुनिया के 30% ग्लेशियर खत्म हो चुके हैं। गंगोत्री, जो कभी गंगा का अटूट स्रोत माना जाता था, हर साल औसतन 15 मीटर पीछे खिसक रहा है।
आप सोचिए… अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी नदियों को सिर्फ किताबों और कहानियों में पढ़ेंगे। गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना – ये नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएंगे, और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ सिर्फ तस्वीरों में इनका अस्तित्व खोजेंगी।
क्या हमने कभी सोचा कि हम इन ग्लेशियरों को क्यों खो रहे हैं?
जिसका कारण साफ हैं ग्लोबल वार्मिंग, अनियंत्रित औद्योगीकरण, जंगलों की कटाई और हमारी बढ़ती लापरवाहियाँ। काले कार्बन का असर इतना बढ़ चुका है कि ग्लेशियरों की सतह पर जमी सफेद बर्फ अब धीरे-धीरे काली पड़ने लगी है। और यह काला धब्बा सिर्फ ग्लेशियरों पर ही नहीं, बल्कि हमारे भविष्य पर भी लग चुका है पर सवाल यह है ? क्या अब भी कुछ किया जा सकता है.?
शायद हां।
अगर हम अपने जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव करें – प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें, कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण करें, पर्वतीय इलाकों में पर्यटन को नियंत्रित करें, और सबसे महत्वपूर्ण – ग्लेशियरों को बचाने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करें, तो शायद हम इस संकट को टाल सकते हैं।
सरकारें भी अपने स्तर पर कदम उठा रही हैं। पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए कई योजनाएँ बनाई गई हैं, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या सिर्फ योजनाएँ बनाना काफी होगा? क्या बिना हमारे सहयोग के ये योजनाएँ सफल हो सकती हैं?
शायद नहीं।
ग्लेशियरों को बचाने के लिए हमें एक सामूहिक प्रयास करना होगा। यह सिर्फ पर्यावरणविदों या वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी नहीं है। यह हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है, जो सांस लेता है, जो पानी पीता है, जो चाहता है कि उसकी अगली पीढ़ी भी खुले आसमान और साफ पानी के साथ इस धरती पर रह सके।
“पृथ्वी को बचाने का सबसे सरल तरीका यही है कि हम अपने ग्लेशियरों को बचाएँ, क्योंकि अगर ये बचे रहेंगे, तो ही हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पानी और जीवन से वंचित नहीं होंगी।”
तो सवाल अब भी वही है ? क्या हम इस पिघलते भविष्य को बचा सकते हैं? या फिर, जब तक हमें होश आएगा, तब तक सब कुछ बह चुका होगा?

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