भारतवासियों के लिए एक अत्यंत गौरवपूर्ण क्षण तब आया जब भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की “Memory of the World” रजिस्ट्री में शामिल किया गया। यह निर्णय न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत की पहचान है, बल्कि विश्व को यह संदेश भी देता है कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रभावशाली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “यह हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण है। यह हमारे समृद्ध साहित्य, दर्शन और सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलने का प्रमाण है।”
गीता: जीवन का मार्गदर्शक ग्रंथ भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह जीवन दर्शन, नैतिकता और कर्तव्य का अद्भुत समन्वय है। यह अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से हमें बताता है कि जीवन में जब कोई रास्ता न दिखे, तब आत्मज्ञान और कर्तव्य ही मार्ग दिखाते हैं।
नाट्यशास्त्र भारतीय रंगमंच की आत्मा भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र भारतीय कला, संगीत, नृत्य और नाटक का सबसे प्राचीन और विस्तृत ग्रंथ है। यह सिर्फ नाट्यकला ही नहीं, बल्कि भावों की अभिव्यक्ति, रंगमंच की तकनीक और अभिनय की बारीकियों का भी विश्लेषण करता है।
यूनेस्को की “Memory of the World” क्या है?
यह एक वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य विश्व की महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दस्तावेजों, पांडुलिपियों, लेखों और अभिलेखों को संरक्षित करना है। इसमें शामिल होना यह दर्शाता है कि संबंधित सामग्री मानव इतिहास और संस्कृति के लिए अमूल्य है।
भारत की सांस्कृतिक पहचान को मिली नई उड़ान भारतवर्ष में ज्ञान, कला और धर्म की परंपरा सदियों पुरानी है। गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को सूची में शामिल होना न केवल इन ग्रंथों की वैश्विक मान्यता है, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकेत भी है।
आज जब दुनिया तेजी से बदल रही है, ऐसे समय में भारत की प्राचीन धरोहर को यूनेस्को द्वारा मान्यता मिलना यह दिखाता है कि भारतीय ज्ञान परंपरा कालातीत है। यह हर युवा के लिए प्रेरणा है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें और विश्व को बताएं कि भारत केवल भविष्य की नहीं, बल्कि अतीत की भी महान सभ्यता है।

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