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#GetOutModi बनाम #GetOutStalin: सोशल मीडिया पर छिड़ी सियासी जंग!

तमिलनाडु में हिंदी थोपने को लेकर बढ़ते विवाद के बीच बीजेपी और डीएमके नेताओं के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। इस बहस ने सोशल मीडिया तक तहलका मचा दिया , जहां #GetOutModi और #GetOutStalin जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। आइए जानते हैं पूरा मामला।

करूर में गरजे अन्नामलाई, स्टालिन पर साधा निशाना

बीजेपी तमिलनाडु अध्यक्ष के. अन्नामलाई करूर जिले में एक कार्यक्रम के दौरान उपमुख्यमंत्री उधयनिधि स्टालिन पर जमकर बरसे। उन्होंने स्टालिन को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है तो वे खुलेआम “गेट आउट मोदी” का नारा लगाकर दिखाएं। यह बयान ऐसे समय में आया जब तमिलनाडु में हिंदी थोपे जाने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।

स्टालिन पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर केंद्र सरकार ने हिंदी थोपने की कोशिश जारी रखी, तो तमिलनाडु में इसका तीखा विरोध होगा। अन्नामलाई ने इस मौके पर स्टालिन के राजनीतिक परिवार पर भी तंज कसा और उनके दादा व पिता—दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों—की विरासत को याद दिलाया।

मोदी बनाम स्टालिन: कौन बेहतर नेता?

अन्नामलाई ने मोदी को “वैश्विक नेता” बताते हुए कहा कि उन्हें पूरा सम्मान मिलना चाहिए। इतना ही नहीं, उन्होंने स्टालिन और मोदी की दिनचर्या की तुलना करते हुए कहा कि मोदी सुबह जल्दी उठते हैं, जबकि स्टालिन देर से जागते हैं। उन्होंने इसे नेतृत्व की परिपक्वता से जोड़ा और इशारों-इशारों में स्टालिन को नाकाबिल साबित करने की कोशिश की।

सोशल मीडिया पर भड़की जंग

अन्नामलाई और स्टालिन की यह बहस जल्द ही सोशल मीडिया तक पहुंच गई। डीएमके समर्थकों ने #GetOutModi ट्रेंड कराना शुरू कर दिया, जिस पर 56,000 से अधिक ट्वीट किए गए। इसके जवाब में बीजेपी समर्थकों ने #GetOutStalin को ट्रेंड करा दिया। इस ऑनलाइन लड़ाई ने दोनों दलों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा दिया।

स्टालिन का पलटवार: डीएमके मुख्यालय आने की दी चुनौती

अन्नामलाई के हमलों का जवाब देते हुए स्टालिन ने बीजेपी नेता को डीएमके मुख्यालय आकर बहस करने की चुनौती दी। उन्होंने बीजेपी पर यह आरोप भी लगाया कि वह तमिलनाडु की आर्थिक समस्याओं और केंद्र से मिलने वाली फंडिंग से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।

नेता नहीं, जनता के मुद्दों पर होनी चाहिए चर्चा

तमिलनाडु में हिंदी थोपने का विवाद नया नहीं है। डीएमके हमेशा से इसे तमिल पहचान के लिए खतरा मानती रही है, जबकि बीजेपी इसे राष्ट्रीय एकता से जोड़ती है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या जनता को इन बयानों से कोई फायदा हो रहा है?

आज जब राज्य को शिक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है, तब यह सोशल मीडिया की लड़ाई किसी को क्या देने वाली है? ‘गेट आउट मोदी’ और ‘गेट आउट स्टालिन’ जैसे ट्रेंड्स से आम जनता का कोई भला नहीं होगा। नेताओं को व्यक्तिगत हमलों के बजाय नीतियों और योजनाओं पर बहस करनी चाहिए। अगर यह सियासी जंग सोशल मीडिया की जगह असल मुद्दों पर लड़ी जाती, तो शायद जनता को इसका असली फायदा मिलता।