हाल ही में वडोदरा में आई विनाशकारी बाढ़ ने कई लोगों की ज़िंदगी पर गहरा असर डाला है, लेकिन इस कठिन समय में शहर के गणेश उत्सव ने एक नई दिशा पकड़ी है। जहां कुछ पंडालों में भगवान गणेश के आगमन पर पारंपरिक जोश और उत्साह है, वहीं कई आयोजक इस साल एक शांत और सेवा-प्रधान उत्सव मना रहे हैं, ताकि बाढ़ पीड़ितों की मदद की जा सके।
एलोरा पार्क के पास पंडाल के आयोजक, नीमेश परमार कहते हैं, “पिछले सालों में हम बड़े धूमधाम से उत्सव मनाते थे, लेकिन इस बार हमने फैसला किया है कि हम अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ पीड़ितों की सहायता में लगाएंगे। हम इस साल भक्तों के लिए रोज़ाना भोज नहीं कर रहे हैं, ताकि बचे हुए पैसे से हम ज़रूरतमंदों को राशन और आवश्यक सामग्री दे सकें।”
इसी तरह, गोत्री के एक लोकप्रिय गणेश पंडाल ने भी इस बार धूमधाम की बजाय शिक्षा का समर्थन करने का रास्ता चुना है। इंद्रप्रस्थ युवक मंडल के आयोजक तरंग शाह बताते हैं, “बाढ़ ने कई घर तबाह कर दिए और छात्रों की किताबें और पढ़ाई का सामान भी नष्ट हो गया। हम बड़े होर्डिंग्स और संगीत के बजट को कम करके, वंचित छात्रों को किताबें और शैक्षिक सामग्री दान कर रहे हैं।”
बाढ़ के कारण सैकड़ों घर जलमग्न हो गए और छोटे व्यापारियों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है। ऐसे में, उत्सव मनाना कुछ लोगों को अनुचित लगता है। तर्साली के श्री राम युवक मंडल के सिमित प्रजापति कहते हैं, “हमने बाढ़ के समय खाद्य सामग्री बांटी थी, और अब हम उत्सव के खर्चों में कटौती कर उन लोगों की आगे भी सहायता करेंगे जिन्हें इसकी ज़रूरत है।”
इस तरह के फैसले न केवल गणेश उत्सव को सेवा और सद्भाव का प्रतीक बनाते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि असली भक्ति नाच-गाने या भव्यता में नहीं, बल्कि दूसरों की मदद में निहित है। इस कठिन समय में,वडोदरा के गणेश पंडालों ने एक नई मिसाल कायम की है कि कैसे त्योहारों को सामाजिक कल्याण से जोड़ा जा सकता है।
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