जैसे ही ओलंपिक पदक विजेता और मशहूर पहलवान विनेश फोगाट ने कांग्रेस पार्टी का दामन थामा, भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के पूर्व अध्यक्ष और बीजेपी नेता बृज भूषण शरण सिंह ने उन पर गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिए। बृज भूषण ने कहा कि विनेश ने ओलंपिक खेलों में ‘धोखा’ करके हिस्सा लिया और इसके लिए उन्हें ‘भगवान की सजा’ मिली।
अचानक क्यों भड़का गुस्सा?
सवाल यह उठता है कि बृज भूषण का यह गुस्सा अचानक से क्यों फूटा? ओलंपिक खत्म हुए एक महीने हो चुका है, फिर अब ये बयान क्यों दिए जा रहे हैं? खासकर तब, जब विनेश फोगाट ने राजनीति में कदम रखा है और कांग्रेस जॉइन कर ली है। क्या ये महज़ संयोग है, या फिर इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है?
क्या कहा बृज भूषण ने?
बृज भूषण ने कहा, “क्या यह सच नहीं है कि बजरंग बिना ट्रायल के एशियन गेम्स में गए थे? मैं विनेश से पूछना चाहता हूँ कि क्या कोई खिलाड़ी एक दिन में दो वेट कैटेगरी में ट्रायल दे सकता है?” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ट्रायल के बाद 5 घंटे के लिए रोक लगा दी गई, और विनेश धोखे से गेम्स में गईं|
इसके साथ ही बृज भूषण ने अपने ऊपर लगे यौन शोषण के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि अगर किसी ने बेटियों की इज्जत को ठेस पहुंचाई है, तो वो विनेश और बजरंग हैं, न कि वह। उनके अनुसार, कांग्रेस नेता भूपिंदर हुड्डा ने इन विरोध प्रदर्शनों की पटकथा लिखी थी और यह सब एक राजनीतिक साजिश थी।
राजनीति का नया खेल?
यहाँ बड़ा सवाल यह है कि बृज भूषण के यह आरोप सिर्फ खेल से जुड़े हैं या इसके पीछे कोई राजनीति है? जब विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने कांग्रेस का दामन थामा और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कदम रखे तभी अचानक से ये आरोप क्यों लगाए गए? क्या ये बृज भूषण की राजनीतिक रणनीति है ताकि वो बीजेपी को फायदा पहुंचा सकें?
विनेश की एंट्री से बृज भूषण को क्या मिलेगा?
बृज भूषण का कहना है कि यह विरोध केवल खेल के लिए नहीं था, बल्कि कांग्रेस की साजिश थी, जिसमें भूपिंदर हुड्डा और उनके साथी शामिल थे। उन्होंने यह भी कहा कि इस साजिश की वजह से भारत की कुश्ती गतिविधियों में रुकावट आई, और इसका असर देश के ओलंपिक प्रदर्शन पर भी पड़ा।
आखिरकार, सवाल यह है कि बृज भूषण इन आरोपों से क्या साबित करना चाहते हैं? क्या ये सब विनेश फोगाट की राजनीति में एंट्री का नतीजा है या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक साजिश है? क्या खेल और राजनीति के बीच की यह जंग खिलाड़ियों के सम्मान की लड़ाई है, या फिर सत्ता की कुर्सी का खेल?
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