उत्तर प्रदेश के बाँदा जैसे छोटे से जिले से निकलकर एक युवा ने पेरिस के अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया है। हम बात कर रहे हैं महेन्द्र पटेल की—एक किसान के बेटे, जिनकी सोच और समर्पण ने उन्हें Paris Inflation Award का विजेता बना दिया।
क्या है ये पुरस्कार और क्यों है खास?
यह पुरस्कार उन संस्थाओं और लोगों को दिया जाता है, जो जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रभावशाली काम कर रहे हैं। महेन्द्र पटेल को यह सम्मान उनकी उस परियोजना के लिए मिला, जिसमें उन्होंने सौर ऊर्जा और हरित ईंधन उत्पादन के जरिए एक स्थायी समाधान विकसित किया।
17 जजों के एक पैनल ने दुनियाभर से आए 500 से अधिक आवेदनों में से महेन्द्र को चुना। उनका उद्देश्य था—प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग कर समाज को आत्मनिर्भर बनाना।
बाँदा की मिट्टी से पेरिस तक की उड़ान जहाँ एक ओर जलवायु परिवर्तन आज विश्व की सबसे बड़ी चुनौतियों में गिना जा रहा है, वहीं महेन्द्र जैसे युवा इस जंग में नायक बनकर सामने आ रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ अपने जिले को गौरव दिलाया बल्कि देश को भी एक नई पहचान दी।
अब सवाल यह उठता है क्या हमारे गाँवों में भी ऐसे और कई महेन्द्र छिपे हैं जिन्हें सिर्फ एक अवसर चाहिए? क्या हमारा सिस्टम और समाज अब ऐसे नवाचारों को खुलकर समर्थन देगा?
क्योंकि याद रखिए…”जहाँ खेतों में बुद्धि की बुवाई होती है, वहाँ से विश्व परिवर्तन की फसल लहराती है!”

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