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देश में 11 वर्षों से चल रही है ‘अघोषित आपातकाल’, वडोदरा में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने देश में लोकतंत्र, संविधान और रेवड़ी कल्चर पर बेबाक टिप्पणी की। शनिवार को वडोदरा में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए दुष्यंत दवे ने कहा, “देश में पिछले 11 वर्षों से अघोषित आपातकाल चल रहा है। इसने हमारी तर्क करने, समझदारी से विचार करने और साहस दिखाने की क्षमता छीन ली है। इस स्थिति से हम कैसे बाहर आएंगे, इसका जवाब केवल समाजशास्त्री ही दे सकते हैं।”

‘सच्ची आजादी 1950 में मिली’

दुष्यंत दवे शनिवार को प्रसिद्ध पुरातत्वविद् और प्रोफेसर डॉ. केटीएम हेगड़े की स्मृति में आयोजित ‘संविधान और नागरिकों के दैनिक जीवन में राज्य’ विषय पर लेक्चर देने वडोदरा पहुंचे थे।
उन्होंने कहा, “आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के अनुसार, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद हमें सच्ची आजादी मिली है, लेकिन मेरा मानना है कि हमें असली आजादी 1950 में संविधान बनने के बाद मिली।”

‘संविधान के मूल में नागरिक हैं’

दवे ने संविधान की व्याख्या करते हुए कहा, “संविधान लोगों को विचारों की स्वतंत्रता, समानता, सम्मान और भारत की एकता व संप्रभुता का अधिकार देता है। संविधान के मूल में एकता, भाईचारे और बंधुत्व की भावना है, जो देश के संचालन के लिए अनिवार्य हैं। नागरिकों को स्वतंत्रता, संपत्ति और शांति की सुरक्षा का अधिकार भी संविधान में दिया गया है। लेकिन अब शासक (चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो) यह मानते हैं कि वे अपनी मर्जी से शासन कर सकते हैं। सिस्टम में आम आदमी खोता जा रहा है।”

‘रेवड़ी कल्चर से जनता को परावलंबी बनाया जा रहा है’

दवे ने वर्तमान शासन प्रणाली पर कटाक्ष करते हुए कहा, “संविधान के अनुसार, शासकों को नागरिकों के शारीरिक, आर्थिक, वैचारिक और सामाजिक विकास का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन अब शासक रेवड़ी कल्चर का इस्तेमाल कर जनता को परावलंबी बना रहे हैं। आज लोकतंत्र केवल चुनाव प्रक्रिया तक सीमित हो गया है।”

‘सत्ता में आने के बाद शासक संविधान को भूल जाते हैं’

लोकतंत्र पर टिप्पणी करते हुए दवे ने कहा, “चुनाव खत्म होते ही लोकतंत्र समाप्त हो जाता है। नागरिकों को अगले चुनाव तक लोकतंत्र के लिए इंतजार करना पड़ता है। शासक सत्ता में आने के बाद शपथ लेने के एक मिनट बाद ही संविधान को भूल जाते हैं। यदि देश में संविधान को बचाना है, तो नागरिकों को खुद आगे आना होगा।”

महाराजा सयाजीराव का शासन: शासक और जनता के संबंधों का आदर्श उदाहरण

दवे ने वडोदरा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ को याद करते हुए कहा, “महाराजा सयाजीराव का शासन शासक और जनता के बीच आदर्श संबंधों का उदाहरण है। उन्होंने न्याय प्रणाली, कृषि क्षेत्र को मजबूत किया और लोक कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। उन्होंने रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचे का विकास किया, उद्योगों को प्रोत्साहित किया और शिक्षा में क्रांति लाई। उनके कार्यकाल में स्कूल, संगीत कॉलेज, लॉ कॉलेज और सैकड़ों लाइब्रेरी स्थापित की गईं। उन्होंने धर्म और जाति के भेदभाव के बिना प्रतिभाशाली लोगों को अवसर दिए। आज के शासकों से ऐसी अपेक्षा करना मुश्किल है।”

दुष्यंत दवे की बातें देश में लोकतंत्र और संविधान की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाती हैं। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए जागरूक हों और सक्रिय भूमिका निभाएं।