गुजरात के बनासकांठा जिले में एक दर्दनाक हादसा हुआ, जब मंगलवार सुबह 8 बजे डीसा तहसील के धुनवा रोड स्थित एक पटाखा फैक्ट्री में भीषण विस्फोट हो गया। इस हादसे में मध्य प्रदेश से आए 18 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 3 अन्य गंभीर रूप से झुलस गए। धमाका इतना जबरदस्त था कि कई मजदूरों के शरीर के अंग 50 मीटर दूर तक बिखर गए।
मजदूरों को भागने तक का मौका नहीं मिला
इस फैक्ट्री में पटाखे बनाए जा रहे थे, जब अचानक बॉयलर फट गया। विस्फोट इतना तीव्र था कि फैक्ट्री की छत और दीवारें ध्वस्त हो गईं, और वहां काम कर रहे मजदूरों को संभलने का भी समय नहीं मिला। चश्मदीदों के मुताबिक, आग की लपटें इतनी ऊंची थीं कि दमकल विभाग को इस पर काबू पाने में 6 घंटे से अधिक समय लग गया।
महज दो दिन पहले पहुंचे थे मजदूर
मृतकों की पहचान अभी जारी है, लेकिन यह साफ हो गया है कि सभी मजदूर मध्य प्रदेश के थे और सिर्फ दो दिन पहले ही काम करने यहां पहुंचे थे। फैक्ट्री के पीछे स्थित खेतों में भी मानव अवशेष मिले हैं, जिससे विस्फोट की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
घायल मजदूर ने बताई भयावह दास्तान
इस हादसे में बचे मजदूर विजय, जो फिलहाल अस्पताल में भर्ती हैं, ने बताया, “हम सभी काम कर रहे थे कि अचानक एक तेज धमाका हुआ। हमारी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और जब होश आया, तो चारों ओर सिर्फ आग ही आग दिख रही थी। हम किसी तरह अपनी जलती हुई हालत में फैक्ट्री से बाहर भागे।”
फैक्ट्री के पास नहीं था पटाखा बनाने का लाइसेंस
प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि दीपक ट्रेडर्स नाम की इस फैक्ट्री का मालिक खूबचंद सिंधी है। पुलिस के अनुसार, फैक्ट्री को सिर्फ पटाखे बेचने का लाइसेंस मिला हुआ था, लेकिन यहां अवैध रूप से पटाखे बनाए जा रहे थे। अब प्रशासन इस बात की जांच कर रहा है कि बिना अनुमति के यह विस्फोटक सामग्री यहां तक कैसे पहुंची।
सरकार और प्रशासन की लापरवाही?
यह हादसा कई बड़े सवाल खड़े करता है—
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बिना लाइसेंस के यह फैक्ट्री कैसे चल रही थी?
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मजदूरों की सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम थे?
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क्या स्थानीय प्रशासन को इसकी जानकारी थी, लेकिन उसने इसे नजरअंदाज कर दिया?
हर साल भारत में कई मजदूर इसी तरह की दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा देते हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता। क्या इस बार भी प्रशासन केवल मुआवजे की घोषणा करके अपनी जिम्मेदारी से भाग जाएगा, या फिर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी?
जरूरत है सख्त नियमों और जागरूकता की
पटाखा फैक्ट्रियों में अक्सर सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जाती है, जिससे इस तरह की भयावह घटनाएं सामने आती हैं। सरकार को इस दिशा में कड़े नियम लागू करने होंगे ताकि मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। नहीं तो हर दिवाली से पहले इसी तरह की खबरें आती रहेंगी और गरीब मजदूरों की जिंदगी चंद पैसों की कीमत पर दांव पर लगती रहेगी।
क्या अब भी हम जागेंगे या अगली त्रासदी का इंतजार करेंगे?

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