सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। ये हिस्से से ज्यादा हमारी आदत बन चुका है जिसे छुड़ाना अब नामुमकिन सा हो गया है। हम इसके वश में इस हद्द तक आ चुके हैं कि इसके बिना एक दिन भी निकालना बहुत ही मुश्किल साबित होता है। रोज मर्रा में एक सेकंड भी फ्री हुए नहीं कि हाथ सीधा फोन पर जाता है और घंटों कब निकल गए पता भी नहीं चलता। इस तरह से हम अपने जिंदगी के पल को लगातार नष्ट करते जा रहे हैं। इसकी जद में आकर कुछ प्रोडक्टिव भी नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन, यह सारी चीजें कितनी खतरनाक हो सकती है। इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
इस कारण से न केवल हम अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं बल्कि, हमारी सेहत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हाल ही में आई एक स्टडी भी इस बारे में खुलासा कर रही है। आइए जानते हैं, इस स्टडी के मुताबिक कैसे सोशल मीडिया हमारी सेहत को प्रभावित करती है और कैसे इस परेशानी से बचा जा सकता है।
डिजिटल युग में, जहां जानकारी की उपलब्धता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। इसने एक नई आदत ने जन्म लिया है वो है डूमस्क्रॉलिंग। यह आदत न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है, बल्कि हमारी उत्पादकता और समग्र जीवन गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
डूमस्क्रॉलिंग (Doomscrolling) क्या है?
डूमस्क्रॉलिंग एक ऐसा व्यवहार है जिसमें व्यक्ति लगातार नकारात्मक और निराशाजनक समाचारों, लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट्स को पढ़ता रहता है, भले ही ये जानकारियां उसे मानसिक तनाव और चिंता का शिकार बना दें। यह आदत अक्सर लोगों को बिस्तर पर लेटे-लेटे या खाली समय में अपने स्मार्टफोन या कंप्यूटर पर स्क्रॉल करते समय पकड़ लेती है।
अमेरिका और ईरान में 800 विश्वविद्यालय के छात्रों के एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया पर परेशान करने वाली खबरों को आदतन और अत्यधिक स्क्रॉल करना (डूमस्क्रॉलिंग) हमें दुखी, चिंतित और क्रोधित कर सकता है।
सतर्क रहें लेकिन फोन चेकिंग को लेकर जुनूनी न हों: विशेषज्ञ
न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हेलेन क्रिस्टेंसन का सुझाव है कि सोशल मीडिया से नियमित ब्रेक लें। बोरियत दूर करने के लिए लोग अक्सर ड्रमस्क्रॉलिंग करते हैं। किसी नए शौक के बारे में सोचें ताकि आप बोर न हों और फिर से सोशल मीडिया की ओर रुख न करें। नकारात्मक से अधिक सकारात्मक समाचार पढ़ने का लक्ष्य निर्धारित करें। फ़ोन चेक करने के लिए सतर्क रहें, लेकिन जुनूनी न हों। स्क्रॉलिंग समय कम करें। सोशल मीडिया पर समय कम करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप वर्तमान में जीना सीखते हैं। अगर ये उपाय काम नहीं करते डॉक्टर की मदद लेने में संकोच न करें। जिंदगी के मायने समझने का तरीका बदल सकता है।
फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक और अध्ययन के लेखक रेजा शबांग का कहना है कि नकारात्मक खबरों के लगातार संपर्क में रहने से, भले ही आप सीधे तौर पर घटना में शामिल न हों, लेकिन मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।
अध्ययनों से पता चला है कि किसी दर्दनाक घटना के बारे में तस्वीरें और जानकारी देखने वाले लोगों में चिंता और अवसाद जैसे पोस्ट-ट्रॉमैटिक तनाव विकार के समान लक्षण होते हैं। शबांग का कहना है कि यदि हम विकास करने का सुझाव देते हैं तो हमें अपने जीवन में खतरा महसूस होने लगता है। इससे दुनिया भर के लोगों के प्रति हमारा दृष्टिकोण और अधिक नकारात्मक हो सकता है। जैसे-जैसे हमारा विश्वास कम होने लगता है, हम दुनिया में हर किसी को संदेह की नजर से देखने लगते हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि डूम्सक्रोलिंग से एमए अस्तित्व के लिए खतरे का यह पहला व्यवस्थित अध्ययन है।
वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के डिजिटल वाइस-बिहेवियर विशेषज्ञ डॉ. जोन ऑरलैंडो पुथ का कहना है कि डूमस्क्रॉलिंग का मानसिक स्वास्थ्य पर असर ‘एक कमरे में रहने जैसा है जहां लोग लगातार आप पर चिल्ला रहे हों।’ उन्होंने कहा कि यूजर्स के लिए यह समझना जरूरी है कि सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों को कितनी अहमियत दी जानी चाहिए।
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