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तारीख पे तारीख : आज भी देश की अदालतों में लाखों केस पेंडिंग

देश में कानून का सहारा लेते लोगों के लिए चिंताजनक खबर ये है कि,तारीख पे तारीख का सिलसिला जारी है,और अभी भी 30 साल पुराने केस फैसले के इंतजार में है।

कई ऐसे अपराधिक मामले होते है,जिनपर फैसला तुरंत हो तो कानून पर भरोसा बना रहता है।निर्भया केस की ही यदि बात करें तो 10 दिसंबर 2012 को हुए इस हादसे को 11 साल 11 साल तक फैसले का इंतजार करना पड़ा 20 मार्च 2020 के रोजकोर्ट ने चार दुष्कर्मियों को फांसी की सजा दी।अभिभाल ही में हुए कोलकाता दुष्कर्म कांड मामले को कब तक सही न्याय का इंतजार करना पड़ेगा ,ये वक्त बताएगा।इस तो कई मार्मिक केस है जिनमे अपराधियों को तुरंत सज़ा होनी चाहिए,पर गवाहों,साकेत विविध पहलुओं पर विचार करने में ही वक्त बीत जाता है,और पीड़ित का परिवार न्याय किब्रह देखता रहता है।

जिस तरह से अपराधिक मामले बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में देश की लगभग सभी अदालतों में कई मामले सालों से पेंडिंग पड़े केस सुलझ नहीं रहे है। और तारीख पे तारीख का सिलसिला बरकरार है। National judicial datagreed यानि NJDG की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के विविध हाईकोर्ट में 58.59 लाख के करीब केस पेंडिंग है। जिनमें 42.64 लाख केस दीवानी है, और 15.94 लाख केस फौजदारी है। और 2.5 लाख केस ऐसे हैं, जो 20 से 30 साल पुराने हैं।1952 के 3 केस 1956 के चार और 1955 के 9 केस का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है। देश की विविध हाईकोर्ट में 30 साल पुराने 62000 केस अभी भी पेंडिंग पड़े हुए हैं।

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा है कि, NJDG के अनुसार केसेस के न सुलझने का कारण अक्सर पक्षकारों की कोर्ट में गैर हाजिरी, और मामले के फैसले को पाने की जल्दी ना होना, उसमें रुचि ना दिखाना भी है। ऐसे 25 से 30% केस को तुरंत बंद किया जा सकता है।
इस पिछले सप्ताह की शुरुआत में जिला न्यायिक व्यवस्था के राष्ट्रीय संबोधन सम्मेलन में संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश की न्यायिक व्यवस्था में स्थगन संस्कृति में परिवर्तन लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि लंबे समय से चल रहे केस और मामलों को लेकर हितधारकों को समस्या का समाधान ढूंढने पर प्राथमिकता देनी चाहिए।