लगातार बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का असर अब हिमालयों के पर्वतीय क्षेत्रों पर भी पड़ने लगा है। यहां भी प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके सीधा प्रभाव वहां की प्रकृति पर पड़ रहा है। हालही में किए गए वैज्ञानिकों के एक शोध में पता चला है कि मौसम ने अब धार्मिक, व्यापारिक और औषधीय तौर पर प्रयोग किए जाने वाले देवदार के पेड़ों पर भी बुरा असर डालना शुरू कर दिया है।
लगातार जलवायु परिवर्तन से हिमालय की सूरत बदलती जा रही है। ग्लेशियरों के निरंतर पिघलने के साथ ही हिमालयी पेड़-पौधों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हिमालय पर अध्ययन कर रहे विज्ञानिकों के एक शोध से पता चला है कि बदलते मौसम के चलते देवदार की लंबाई में 37 से 47 प्रतिशत तक कमी आ गई है। यह प्रभाव 2500 मीटर से ऊपर उगने वाले देवदारों पर पड़ रहा है। हालांकि निचले क्षेत्रों के हालातो के बारे में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है वहां अध्ययन होना बाकी है।
इन तीन पहाड़ी राज्यों में हुआ अध्ययन
गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में देवदार के पेड़ों की हालत गंभीर है। तीनों राज्यों में 17 स्थानों पर अध्ययन के बाद ये चिंता जाहिर की गई है। यहां कभी ज्यादा बारिश-बर्फबारी तो कभी अधिक गर्मी से पेड़ों के पोषण का ग्राफ गड़बड़ा गया है। जिसका पूरा प्रभाव पेड़ों की लंबाई पर पड़ रहा है।
कार्बन सोखने में देवदार की अहम भूमिका
वैज्ञानिकों के अनुसार आने वाले वक्त में पेड़ों पर अभी और प्रभाव दिख सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर हिमालय के पर्यावरण पर पड़ेगा। इसका मुख्य कारण देवदार के पेड़ हैं। जो जंगल से कार्बन सोखे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस स्थिति में जब कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा हो और देवदार की सेहत गिर रही हो यह बहुत ही चिंता का विषय बन जाता है।
पूरे क्षेत्र में कार्बन सोखने का एक मात्र स्त्रोत देवदार
गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक, देवदार के पेड़ वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि पौराणिक रूप से भी काफी अहम माने जाते हैं। उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर दक्षिण पूर्व में करनौली तक फैला देवदार कार्बन सोखने का एक पड़ा स्त्रोत है। देखा जाए तो आमतौर पर इस पेड़ की आयु 500 से 600 साल तक की होती है।
ऊंचाई क्षेत्रों में कम हो रही पेड़ो की लंबाई
वैज्ञानिको के अनुसार सामान्य तौर पर देवदार के पेड़ 1800 से 3300 मीटर ऊंचाई पर पाए जाते हैं। इनकी लंबाई सामान्य तौर पर 40 से 50 मीटर तक होती है। परंतु ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इनकी लंबाई तेजी से कम होती जा रही है। शोध के दौरान ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कई देवदार के पेड़ ऐसे मिले जो आम तौर पर लंबाई की तुलना में 14 से 22 मीटर कम थे।
वैज्ञानिकों ने जताई चिंता
लगातार बढ़ती ग्लोबल वार्मिग की वजह से पर्यावरण असंतुलित हो गया है। जिसका सीधा असर इन देवदार के पेड़ों की लंबाई पर पड़ रहा है। जीबी. पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा ने इस विषय पर गंभीरता बर्तने के निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि इससे बचने का केवल एक ही तरीका है वह है जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण। यदि इसके लिए कोई भी कड़े कदम नहीं उठाए गए तो हिमालय के लिए जलवायु परिवर्तन एक श्राप बन जाएगा।
कई दवाओं में होता है देवदार का प्रयोग
देवदार को विज्ञान की भाषा में एलरग्रीन कोनिफर ट्री के नाम से जाना जाता है। इसकी पत्तियां सुई की तरह नुकीली होती हैं। इसके तने, पत्तियों और लकड़ी कई प्रकार की दवाईयां बनाने में प्रयोग की जाती हैं। देवदार से तेल भी निकाला जाता है। इससे बाम और कई तरह की दर्द निवारक दवाईयां बनाई जाती हैं।
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