CATEGORIES

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728  
Wednesday, February 12   3:55:12

क्या सिर्फ अज़ान से ध्वनि प्रदूषण फैलता है, आरती से नहीं???

सितम की इंतिहा पर चल रही है,
ये दुनिया किस ख़ुदा पर चल रही है।

सत्ता के दम पर समुदायों में आपस में ही होड़ मच गई है। एक ओर वोटों के नाम पर एक समुदायों को नीचा दिखाकर वोट मांगे जा रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर उन्हें दबाने के लिए कोर्ट कचहरी तक पहुंचा जा रहा है। ये सब इसलिए क्योंकि गुजरात की उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दर्ज किया गया। ये मुकदमा लाउडस्पीकर में अजान पढ़ने पर प्रतिबंध लगाने पर आधारित था। गुजरात की उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुनिता अग्रवाल ने इस केस पर याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई।

एक हॉस्पिटल में काम करने वाले दलित धर्मेंद्र प्रजापति की याचिका में लाउडस्पीकर से अजान दिए जाने को मरीजों के लिए बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य को खतरा बताया था। यह जनहित याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज करते हुए कहा कि दिन में पांच बार अजान के लिए मस्जिदों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल में ध्वति प्रदूषण नहीं होता है।

मुख्य न्यायाधीश सुनिता अग्रवाल ने इस पर कहा कि “आपका डीजे बहुत प्रदूषण फैलाता है। हम इस तरह की जनहित याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं। यह एक विश्वास और अभ्यास है जो वर्षों से चल रहा है और यह केवल पांच मिनट का क्षण है। अज़ान 10 मिनट से भी कम समय तक चलती है।

मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि “क्या आरती से भी इसी तरह अशांति पैदा नहीं होती है।आपके मंदिरों में, सुबह की आरती उन ढोल और संगीत के साथ होती है जो सुबह-सुबह शुरू होती है। इससे किसी को कोई शोर या परेशानी नहीं होती ? क्या आप कह सकते हैं कि उस घंटे और घड़ियाल का शोर मंदिर परिसर के भीतर ही रहता है और परिसर से बाहर नहीं जाता है ?”

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध मयी की खंडपीठ ने कहा कि जनहित याचिका पूरी तरह से गलत है क्योंकि याचिका यह दिखाने में विफल रही है कि लाउडस्पीकरों के माध्यम से मानव आवाज ने ध्वनि प्रदूषण के कारण स्वीकार्य सीमा से अधिक ध्वनि डेसिबल कैसे बढ़ाई।

पेशे से डॉक्टर होने का दावा करने वाले धर्मेंद्र प्रजापति द्वारा दायर जनहित याचिका में दलील दी गई है कि मस्जिदों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल से अशांति और ध्वनि प्रदूषण होता है। पीठ ने हालांकि जानने की कोशिश की है कि याचिकाकर्ता ने किस आधार पर दावा किया कि ध्वनि प्रदूषण होता है।

मुख्य न्यायाधीश सुनिता अग्रवाल ने जो कहा वह गुजरात से आता आश्चर्यजनक सच है। जब कोई काम सत्ता में रहकर नहीं हो पाता तो समाज के दुश्मन किसी न किसी प्रकार का अडंगा लगाने के लिए कोर्ट का सहारा ले रहे हैं।

हिंदू धर्म में भी कई धार्मिक क्रियाकलाप होते हैं जिसमें अधिक शोर मचता है। लेकिन, इसके लिए कभी किसी मुसलमान ने अदालत के दरवाजें नहीं खटखटाए। इसके विपरित सार्वजनिक जगहों पर दो मिनट की नमाज को लेकर कई बार मार खाइ तो कभी जेल गए और सरकारों ने ऐसी जगहों पर नमाज पढ़ने पर ही प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन, बहुसंख्यक मुसलमानों ने हिंदूओं के सभी त्योहारों के सार्वजनिक स्थलों पर मनाने पर कभी कोई सवाल नहीं उठाए। लेकिन, सत्ता में पागल धर्मेंद्र प्रजापति जैसे लोग कैसे इतना सब कुछ कर सकते हैं, ये मुख्य न्यायाधीश सुनिता अग्रवाल की टिप्पणी इसका सटीक उदाहरण है।