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डिजिटल अरेस्ट: फर्जी पुलिसवालों के जाल में फंसी ‘आधुनिक’ कैदी

आजकल अपराधियों के तरीके भी बदल गए हैं। फिजिकल चोरी और डकैती के बजाय, अब ये अपराधी डिजिटल दुनिया का सहारा लेकर लोगों से सरेआम लूटपाट कर रहे हैं। ताजे मामलों में जोधपुर की महिला डॉक्टर और आईआईटी प्रोफेसर जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को भी इन ठगों ने अपनी गिरफ़्त में लिया। यह नया अपराध “डिजिटल अरेस्ट” के नाम से पहचाना जा रहा है, जहां लोगों को फर्जी पुलिस अधिकारियों द्वारा घंटों घर में बंद रखा जाता है और उनका मानसिक उत्पीड़न किया जाता है, ताकि वे अपनी जमा-पूंजी लुटवा दें।

एक नई तरह की चोरी

डिजिटल अरेस्ट का मतलब है कि किसी व्यक्ति को किसी फर्जी मामले में फंसाकर उसका मोबाइल और अन्य डिवाइसेस की पूरी तरह से निगरानी रखना। पुलिस की वर्दी में छुपे ठग, लोगों को फोन या वीडियो कॉल करके उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि वे किसी गंभीर अपराध में शामिल हो गए हैं। इसके बाद, शिकार को दबाव में डालकर वह ठग उनका बैंक खाता, पासवर्ड और अन्य निजी जानकारी हासिल कर लेते हैं।

एक खौ़फनाक अनुभव

जोधपुर की महिला डॉक्टर ने एक ऐसा ही खौ़फनाक अनुभव शेयर किया, जहां फर्जी पुलिसवाले ने उसे 22 घंटे तक वीडियो कॉल पर रखा। रात भर उसका फोन चालू रखा गया और उसे धमकाया गया कि अगर वह सहयोग नहीं करती है तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। उस महिला ने बताया कि उसे अपने घर में कैदी सा महसूस हुआ, क्योंकि सोते वक्त भी वीडियो कॉल बंद नहीं किया गया। इस डर और मानसिक दबाव में वह ठगों के कहने पर बैंक से पैसे ट्रांसफर करवा बैठी।

वहीं, आईआईटी जोधपुर की असिस्टेंट प्रोफेसर अमृता पुरी ने भी बताया कि कैसे ठगों ने उसे मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में फंसाकर 10 दिन तक मानसिक उत्पीड़न किया। उन्हें यह बताया गया कि उनका नाम ड्रग्स तस्करी और पाकिस्तान से जुड़े आतंकी फंडिंग में शामिल है। इसके बाद, वे लगातार उस महिला से विभिन्न बैंक खातों से पैसे ट्रांसफर करवा रहे थे। जब प्रोफेसर ने अंततः साइबर थाने में शिकायत की, तब जाकर वह जान पाई कि वह डिजिटल अरेस्ट का शिकार हो चुकी थी।

ठगों का तरीका: डर और विश्वास का खेल

इन ठगों का तरीका एकदम बारीकी से डिज़ाइन किया गया है। वे पहले शिकार को डराने की कोशिश करते हैं। जब व्यक्ति घबराता है और उनकी बातों पर विश्वास कर लेता है, तो फिर वे धीरे-धीरे शिकार को पूरी तरह से नियंत्रण में ले लेते हैं। ठगों का कहना होता है कि उनके पास व्यक्ति के खिलाफ सबूत हैं, और उन्हें तुरंत मदद की आवश्यकता है। इसके बाद, वे शिकार से लगातार पैसे ट्रांसफर करवा लेते हैं।

यहां एक बात समझनी जरूरी है कि ये ठग सिर्फ आम नागरिकों को ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े अफसरों और प्रोफेशनल्स को भी अपना शिकार बना रहे हैं। समाज के उच्च तबके के लोग भी इन ठगों के जाल में फंस रहे हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि कैसे हमारी डिजिटल सुरक्षा कमजोर हो चुकी है।

क्या करना चाहिए?

इस प्रकार की धोखाधड़ी से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कभी भी अनजान नंबर से आए फोन कॉल या वीडियो कॉल पर विश्वास न करें। अगर कोई व्यक्ति खुद को पुलिसकर्मी या अधिकारी बताता है और अचानक किसी अपराध में शामिल होने का आरोप लगाता है, तो तुरंत उस मामले की जांच करें। अपने बैंक डिटेल्स, व्यक्तिगत जानकारी या कोई भी संवेदनशील डेटा किसी से शेयर न करें।

याद रखें, कोई भी सरकारी अधिकारी कभी भी बिना एक आधिकारिक प्रक्रिया के आपसे पैसे नहीं मांगता। ऐसे मामलों में हमेशा पुलिस या संबंधित विभाग से संपर्क करें और पूरी स्थिति की जांच करें।

यह सच्चाई है कि डिजिटल दुनिया ने हमें कई सुविधाएं दी हैं, लेकिन इसके साथ ही इसके खतरों से भी हम अनजान हैं। डिजिटल फ्रॉड्स के मामले दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं, और यह जरूरी है कि हम इनसे बचने के लिए अपनी जागरूकता को और बढ़ाएं। ठगों के नए तरीके से न केवल पैसा बल्कि लोगों की मानसिक शांति भी लूटी जा रही है। ऐसे मामलों में न केवल सरकार की जिम्मेदारी है, बल्कि हमें भी अपनी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।