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महाकुंभ में ‘कांटे वाले बाबा’ को देखकर चौंके भक्त, 50 सालों से कांटों की शय्या पर कर रहे तपस्या

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा हुआ है। यहां आस्था के अनोखे और अद्भुत रूप देखने को मिल रहे हैं। स्प्लेंडर बाबा और आईआईटीयन बाबा के चर्चे अभी ठंडे भी नहीं हुए थे कि अब ‘कांटे वाले बाबा’ इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। इनका असली नाम रमेश कुमार मांझी है, और अपनी अनूठी साधना शैली के कारण वे महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

कांटे वाले बाबा कांटों की शय्या पर साधना करते हैं, और इसी वजह से उन्हें यह नाम दिया गया है। बाबा ने बताया कि वे पिछले 50 वर्षों से हर साल इसी प्रकार साधना करते आ रहे हैं। उनका कहना है, “इन कांटों से मुझे कोई नुकसान नहीं होता। मैं गुरु की सेवा करता हूं। उन्होंने मुझे ज्ञान और आशीर्वाद दिया है। भगवान की कृपा से मैं इस तरह की साधना कर पाता हूं। पिछले 40-50 वर्षों से मैं ऐसा ही कर रहा हूं।”

बाबा के अनुसार, वे उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और गंगासागर जैसे धार्मिक स्थलों पर भी जाते हैं। कांटों पर सोने से उन्हें शारीरिक लाभ भी मिलता है। बाबा ने कहा, “मैं ऐसा इसलिए करता हूं क्योंकि इससे मुझे कोई तकलीफ नहीं होती, बल्कि फायदा होता है। मुझे दिनभर में करीब हजार रुपए दान में मिल जाते हैं। जो भी दक्षिणा मिलती है, उसका आधा हिस्सा जन्माष्टमी के दौरान दान कर देता हूं और बाकी से अपना खर्च चलाता हूं।”

देश-विदेश से पहुंचे संत-महंत
महाकुंभ में देश-विदेश के संत और महंत भी भारी संख्या में शामिल हो रहे हैं। बुधवार शाम प्रयागराज के अरैल टेंट सिटी में 10 देशों के 21 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने पहुंचकर संगम तट पर स्नान किया। इस समूह में फिजी, फिनलैंड, गुयाना, मलेशिया, मॉरीशस, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, त्रिनिदाद और टोबैगो तथा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के प्रतिनिधि शामिल थे।

यात्रा के दौरान यह प्रतिनिधिमंडल प्रयागराज की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को जानने के लिए हेरिटेज वॉक में भी भाग लेगा। महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से शुरू हुआ है और यह 26 फरवरी तक चलेगा।

कांटे वाले बाबा: तपस्या का अद्भुत उदाहरण
कांटे वाले बाबा की साधना आस्था और अडिग विश्वास का एक अनूठा उदाहरण है। कांटों की शय्या पर तपस्या करने की उनकी परंपरा ने महाकुंभ में श्रद्धालुओं और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है। उनकी साधना न केवल शारीरिक सहनशक्ति को दर्शाती है, बल्कि उनके ईश्वर और गुरु के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है।