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अनेकों मुश्किलों के बावजूद स्वयंसिद्धा बनी द्रौपदी मुर्मू, अध्यात्म , सत्य और ईमानदारी की वे है मिसाल

23-07-22

देश के सर्वोच्च गौरवान्वित करते राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में यशवंत सिन्हा जैसे दिग्गज नेता को हराकर दुगने मतों से जीत हासिल करने वाले आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू ने इतिहास रचा है।
भारत में राष्ट्रपति पद का स्थान संवैधानिक रूप से सर्वोच्च है । वर्ष 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से भाजपा को छोड़कर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में जुड़े भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज नेता यशवंत सिन्हा को उतारा गया था,वही भाजपा की ओर से आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को मनोनीत किया गया था। इस चुनाव में द्रौपदी मुर्मू ने यशवंत सिन्हा के मुकाबले दुगने मतों से जीत हासिल की है। द्रौपदी मुरमू को 7,70,803 जबकि यशवंत सिन्हा को 3,80, 177 मत प्राप्त हुए हैं। भाजपा के नेतृत्व में एनडीए के पास 5,25,893 मत थे जबकि विरोध में 5,53,122 मत थे। यू मुर्मू ने 64% मत प्राप्त किए जबकि यशवंत सिन्हा को 36% मत मिले।द्रौपदी मुर्मू की जीत में क्रॉस वोटिंग ने भी महत्व का रोल निभाया है।
इस आदिवासी नेता के जीवन की कहानी कही कांटो तो कही फूलों से भरी है। उनमें कभी कोई मोह नहीं देखा गया।
सन 1970 के दशक में उड़ीसा के मयूरभंज जैसे पिछड़े इलाके में राज्य के मंत्री, जिलाधीश और अन्य उच्चाधिकारी गांव की मुलाकात लेने आए थे। बैठक चालू थी, इस दौरान एक छोटी सी बच्ची भीड़ को चीरती हुई आगे आई, और उसने कहा कि मुझे आपसे एक बात कहनी है ।मंत्रीजी ने अनुमति दी ।बच्ची ने कहा कि मुझे पढ़ने की बहुत ही ईच्छा है,पर हमारे गांव में लड़कियों का स्कूल नहीं है। आप भुवनेश्वर की कन्या शाला में मैं मुझे ऐडमिशन दिलवाएंगे? मंत्रीजी ने जिलाधीश से बात की, और बच्ची की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। इस घटना के तकरीबन 52 साल बाद उम्र की इस अवस्था में पहुंची इस लड़की का आज मयूरभंज में दो मंजिला 6 कमरे का मकान है। उसने जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे।
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, द्रौपदी मुर्मू का एक ही सपना था, सरकारी नौकरी। उनको ख्याल था कि सरकारी नौकरी मिल जाने पर उनकी,और उनके परिवार की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। उन्हें सिंचाई विभाग में क्लर्क की नौकरी मिली। वक्त के साथ बैंक अधिकारी के साथ शादी हुई। ससुराल, बच्चे, परिवार ,सबकी जिम्मेदारी संभालने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। समय बीतने के साथ उन्होंने सरकार की सहायता से मिली शिक्षा का ऋण चुकाने के भाव से एक स्कूल में मानद शिक्षक के रूप में सेवा देना शुरू किया ।इस कार्य के चलते उनको बहुत ही कीर्ति मिली। समाज सेवा के अन्य कार्य में भी वे जुड़ी। इसी दौरान पहली बार भाजपा और बीजू जनता दल के गठबंधन के समय में उन्होंने नगरसेवक का चुनाव लड़ा, और जीत हासिल की ।उसके बाद वे विधायक बनी और मंत्री पद तक भी पहुंची। 2009 में वे चुनाव हार गई,और सरकारी मकान खाली करना पड़ा ।मंत्री पद पर होते हुए भी उनकी निष्ठा और ईमानदारी के चलते वे आर्थिक रूप से उतनी सफल नहीं थी। उसी वर्ष उन्होंने अपने 25 साल के बेटे को भी खो दिया ।वे मानसिक बीमारी का शिकार हो गई, और अध्यात्म के मार्ग की ओर चल पड़ी ।2013 में उनका दूसरा बेटा भी सड़क दुर्घटना में चल बसा ।इसी साल उन्होंने अपने माता और भाई को भी खोया ।एक के बाद एक अपने स्वजन खोने का गम उन्हें सता रहा था। कुदरत के इतने प्रहार शायद कम थे कि, कुछ सालों बाद उनके पति की भी मृत्यु हो गई। मेडिटेशन के माध्यम से वे अपने आप को स्वस्थ कर पाई और पुनः एक बार सामाजिक जीवन में एक्टिव हुई। 2015 में झारखंड के राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। यहां भी उन्होंने अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा वे राज्यपाल के रूप में रबर स्टैंप बनने को बिल्कुल तैयार नहीं थी। एक आदिवासी नेता के रूप में उन्होंने किसी भी स्थिति में कभी भी अपने सत्य के मार्ग और ईमानदारी को नहीं छोड़ा।और अब तो देश का सर्वोच्च पद उनका इंतजार कर रहा था।
2022 में इस साल भारतीय जनता पार्टी ने देश के 16 में राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में उन्हें पसंद किया। द्रौपदी मुर्मू के एक कमरे के घर में हुए जन्म के बाद अपनी मेहनत से दो मंजिला घर बनाने वाली द्रौपदी मुर्मू को जिंदगी ने इतना कुछ सिखाया है, कि 330 एकर में फैले राष्ट्रपति भवन में भी उनकी सादगी वैसी ही रहेगी।देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ढेरों शुभकामनाएं।