दिल्ली में बीजेपी विधायक रविंद्र सिंह नेगी ने नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानें बंद रखने की मांग की है। उन्होंने प्रशासन और नगर निगम को पत्र लिखकर इस मांग को औपचारिक रूप देने का प्रयास किया है। हालांकि, इस कदम पर स्थानीय दुकानदारों और विपक्षी पार्टियों ने कड़ा विरोध जताया है।
नेगी की मांग और उसका आधार
नेगी का कहना है कि नवरात्रि हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है। जब लोग उपवास रखते हैं और मंदिर जाते हैं, तो मीट की दुकानों का खुला रहना उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। इसलिए, उन्होंने कम से कम अपनी विधानसभा पटपड़गंज में दुकानों को बंद रखने की अपील की है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि दुकानदार स्वेच्छा से समर्थन दे रहे हैं, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
दुकानदारों की चिंता: रोजी-रोटी पर संकट
पटपड़गंज और वेस्ट विनोद नगर के मीट दुकानदारों ने इस मांग को राजनीति से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि बिना किसी आधिकारिक आदेश के दुकानें बंद करवाना उनकी आजीविका पर सीधा हमला है।
मोहम्मद साबिल, जो पटपड़गंज में मीट की दुकान चलाते हैं, कहते हैं,
“अगर सरकार का आदेश आएगा, तो हम उसका पालन करेंगे। लेकिन राजनीतिक दबाव में दुकानें बंद करना हमारी मुश्किलें बढ़ाएगा। किराया, बिजली बिल और कर्मचारियों की तनख्वाह कैसे देंगे?”
स्थानीय लोगों की राय: राजनीति बनाम सामाजिक सद्भाव
वहीं, स्थानीय हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस फैसले को अनावश्यक बताया।
शमीम आलम, एक स्थानीय दुकानदार, कहते हैं,
“मीट खाने वाले सिर्फ मुस्लिम नहीं होते, हिंदू भी मीट खाते हैं। ऐसे फैसले सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देते हैं।”
किशोर महाजन, एक ज्वेलरी शॉप के मालिक, का मानना है,
“जो खुले में मीट बेचते हैं, उन पर प्रतिबंध लगाना समझ में आता है, लेकिन जबरदस्ती किसी को रोकना सही नहीं है। हर किसी की रोजी-रोटी का सम्मान होना चाहिए।”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मामले पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा,
“क्या अब बीजेपी तय करेगी कि लोग कब और क्या खाएंगे? इस तरह की राजनीति सिर्फ समाज को बांटने का काम करती है।”
AAP सांसद संजय सिंह ने कहा,
“अगर मीट की दुकानें बंद करवानी हैं, तो क्या बीजेपी के नेताओं के रेस्टोरेंट और फास्ट फूड चेन जैसे KFC और McDonald’s भी बंद होंगे?”
विश्लेषण: आस्था और आजीविका के बीच संतुलन
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक आस्था और आजीविका के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। लोकतांत्रिक समाज में किसी की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना ज़रूरी है, लेकिन इसके नाम पर दूसरों की आजीविका पर असर डालना उचित नहीं है।
पॉलिटिकल साइंटिस्ट शिवानी कपूर कहती हैं,
“दक्षिणपंथी राजनीति में अक्सर धार्मिक भावनाओं को भुनाने की कोशिश की जाती है। इस तरह के फैसले समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं, जिससे राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।”
नवरात्रि जैसे पावन अवसर पर आस्था का सम्मान करना निस्संदेह महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे किसी की रोजी-रोटी पर कुठाराघात करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल करना अनुचित है। सहिष्णुता और परस्पर सम्मान ही भारतीय संस्कृति की पहचान है। प्रशासन को चाहिए कि बिना भेदभाव के दोनों पक्षों को सुनें और ऐसा समाधान निकालें, जिससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहत न हों और किसी की आजीविका भी बाधित न हो।

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