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दिल्ली चुनाव 2024: AAP की पहली लिस्ट में बीजेपी और कांग्रेस के ‘बागी’ नेताओं की एंट्री, क्या है इसके पीछे की साजिश?

दिल्ली विधानसभा चुनाव की दहलीज पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी पहली उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में कुल 11 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं, जिनमें से 6 ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने बीजेपी और कांग्रेस से इस्तीफा देकर आप की सदस्यता ली है। यह कदम दिल्ली की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है, क्योंकि इन नेताओं का चुनावी महत्व भी है और इनकी आम आदमी पार्टी में एंट्री बीजेपी और कांग्रेस के लिए एक नया सिरदर्द बन सकती है।

BJP और कांग्रेस से बड़े नामों की एंट्री

लिस्ट में शामिल प्रमुख नामों में ब्रह्म सिंह तंवर, बीबी त्यागी और अनिल झा हैं, जो हाल ही में बीजेपी छोड़कर AAP में शामिल हुए हैं। इसके अलावा, जुबैर चौधरी, वीर सिंह धींगान और सुमेश शौकीन जैसे नेता कांग्रेस से आप में आए हैं। इन नेताओं की एंट्री न केवल पार्टी के लिए एक ताकतवर बढ़त साबित हो सकती है, बल्कि दिल्ली के राजनीतिक समीकरणों में भी खलबली मचा सकती है। इस रणनीतिक कदम से आम आदमी पार्टी ने यह संदेश दिया है कि वह अपने चुनावी संघर्ष में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ने वाली है।

दिल्ली की राजनीति में बड़ा फेरबदल

दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखें जैसे-जैसे करीब आती जा रही हैं, वैसे-वैसे दिल्ली की राजनीति में हलचल बढ़ती जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी, जबकि बीजेपी महज 8 सीटों पर सिमट गई थी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। अब जबकि विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी 2025 को खत्म होने वाला है, दिल्ली में चुनावी माहौल बन चुका है। इस बार, AAP की चुनौती बीजेपी और कांग्रेस के सामने है, लेकिन पार्टी का ताकतवर चेहरा और नयी रणनीति उसकी स्थिति मजबूत कर सकती है।

मुख्यमंत्री केजरीवाल की जेल यात्रा और सत्ता की खिचड़ी

पिछले एक साल में दिल्ली सरकार के भीतर कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तिहाड़ जेल यात्रा, जिसमें उन्होंने 156 दिन जेल में बिताए, और फिर उनकी रिहाई के बाद का घटनाक्रम दिल्ली की राजनीति में चर्चा का विषय बना। शराब नीति केस में उनके खिलाफ दो प्रमुख जांच एजेंसियां (ED और CBI) सक्रिय थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे जेल से बाहर आए। इसके बाद 17 सितंबर को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और 21 सितंबर को आतिशी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। यह बदलाव भी राजनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखता है, क्योंकि आतिशी दिल्ली की सबसे युवा मुख्यमंत्री बन चुकी हैं।

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा: AAP का विस्तार

आम आदमी पार्टी की सफलता का यह दौर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है। 2012 में अन्ना हज़ारे के आंदोलन के बाद बनाई गई इस पार्टी को 2023 में चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया। यह प्रतिष्ठा AAP को उस वक्त मिली जब उसने दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात में 6% से ज्यादा वोट हासिल किए। दिल्ली और पंजाब में तो आम आदमी पार्टी की सरकार भी है, और अब पार्टी का संगठन हरियाणा और गुजरात में भी मजबूत हो रहा है। यह पार्टी का विस्तार और राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता प्रभाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकता है।

क्या है AAP की चुनावी रणनीति?

AAP की चुनावी रणनीति अब तक काफी प्रभावी साबित हुई है, और पार्टी ने हमेशा ग़रीबों और आम लोगों के हित में काम करने का दावा किया है। दिल्ली में स्कूलों की बेहतरी, मुफ्त बिजली और पानी की योजनाओं के बाद पार्टी ने अब बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। आने वाले चुनाव में ये चेहरे AAP के लिए एक महत्वपूर्ण टूल बन सकते हैं। चुनावी प्रचार के दौरान यदि पार्टी अपने नए नेताओं की छवि को सही तरीके से प्रस्तुत करती है, तो वह मतदाताओं में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है।

कैलाश गहलोत की भाजपा में एंट्री: AAP के लिए एक और चुनौती

दिल्ली के पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत ने हाल ही में आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। यह घटना दिल्ली की राजनीति में एक नया मोड़ लाती है। उनका आरोप था कि ED और CBI के दबाव के चलते उन्होंने पार्टी छोड़ी, लेकिन उनके इस फैसले ने AAP को निश्चित रूप से झटका दिया है। भाजपा में उनका शामिल होना पार्टी के लिए एक बड़ा लाभ साबित हो सकता है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र आम आदमी पार्टी ने अपनी पहली सूची में बीजेपी और कांग्रेस से आए नेताओं को शामिल करके चुनावी रंग को और भी रोचक बना दिया है। हालांकि, AAP को अब भी यह साबित करना होगा कि उसके नए नेता कितना असरदार हो सकते हैं, और क्या वे दिल्ली की जनता के दिलों में अपनी जगह बना पाएंगे। यह चुनाव दिल्ली की राजनीतिक दिशा तय करेगा और हम देखेंगे कि क्या AAP का यह आक्रामक कदम उसे फिर से सत्ता में लाने में सफल हो पाता है, या फिर बीजेपी और कांग्रेस अपने खोए हुए प्रभाव को पुनः स्थापित कर पाएंगे।