भारत में विज्ञान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले डॉ सीवी रमन की आज यानी 21 नवबंर को डेथ एनिवर्सरी है। आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि देकर याद कर रहा है। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश में विज्ञान और उसकी शिक्षा के उत्थान के लिए लगा दिया। सीवी रमन एशिया के पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने रमन इफेक्ट की खोज की। इतना ही नहीं इसके लिए उन्हें फिजिक्स में नोबल प्राइज भी मिला।
सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 में ब्रिटिश राज के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके पिता चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर एक स्थानीय हाई स्कूल में शिक्षक थे। उनका जीवन बहुत सामान्य था। उनके पिता की कमाई महज 10 रुपये प्रति माह थी। जिसके बाद 1892 में उनका परिवार आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम (तब विजागपट्टम या विजाग) चला गया। रमन के पिता शिक्षक थे इसलिए उनका पढ़ाई में रुझान बचपन से ही था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट अलॉयसियस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल, विशाखापत्तनम से की।
रमन पढ़ाई में इतने तेज थे की उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में मैट्रिक और 13 साल की उम्र में इंटरमीडिएट परीक्षा क्लियर कर पूरे आंध्र प्रदेश में पहला स्थान हांसिल किया। 1902 में उ्न्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन ले लिया। 1904 में, उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से प्रथम स्थान हांसिल कर बीए की डिग्री प्राप्त की। इतना ही नहीं उन्हें भौतिकी और अंग्रेजी में अच्छे प्रदर्शन के लिए गोल्ड मेडल भी मिला।
1907 में रमन को एक गोल्डन चांस मिला जब उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास से एमए की डिग्री हासिल की। उनकी कौशलता देखते हुए सरकार ने उन्हें बाहर पढ़ने का मौका दिया, लेकिन रमन शारीरिक रूप में कमजोर थे। इसके चलते डॉक्टर ने कहा की वे लंडन के वातावरण में नहीं रह पाएंगे और ये मौका उनके हाथ से चला गया। फिर 1907 में ही उन्हों ने FCS का एक्जाम दिया और 1907 से 1917 तक कलकत्ता में क्लर्क की नौकरी की।
लेकीन वे कुछ ना कुछ एक्सपेरिमेंट करते रहते थे, जिसे आशुतोष मुखर्जी की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने ने रमन को कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स के प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त कर लिया। लेकीन, उनके जीवन में मोड़ तब आया जब वे IACS कलकत्ता के हॉनरेरी सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त हुए। 1926 में उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ़ फिजिक्स “आ न्यू रेडिएशन” की नींव रखी क्योंकि उस वक्त तक कोई भी फिजिक्स की जर्नल भारत में नहीं थी।
जानें कैसे हुई मन इफेक्ट की खोज
एक बार की बात है जब 1921 में वे ऑक्सफोर्ड से लौट रहे थे तभी उनके मन में विचार आया की पानी नीला क्यों है। जबकी पानी तो ट्रांसपेरेंट होता है। तब के वैज्ञानिक के अनुसार ये आसमान का रिफ्लैंक्शन है, लेकिन रमन ने गौर किया तो आसमान और पानी का रंग काफ़ी अलग था जिसके बाद रमन अपने ही एक स्टूडेंट के साथ इस चीज़ की खोज करने लग गए।
28 फरवरी 1928 क्वांटम नेचर ऑफ लाइट पे एक्सपेरिमेंट कर के रमन इफ्क्स्ट की खोज की और दुनिया भर के वैज्ञानिक को गलत साबित किया और ये बताया की पानी का कॉलर नीला इसलिए होता है क्योंकि पानी में छोटे पार्टिकल मौजूद है जो लाइट को रिफ्लेक्ट करते हैं जिसे समंदर का पानी नीला होता और इसे नाम दिया गया रमन इफेक्ट।
इस रेवोल्यूशनरी खोज के लिए 1930 में रमन को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वे पहले भारतीय और एशिया के ऐसे व्यक्ति बने जिन्हें फिजिक्स में नोबल पुरस्कार मिला। इसे पहले 1913 रविंद्रनाथ टैगोर को लिट्रेक्चर के लिए नोबल पुरस्कार मिला था।
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