“तुम बड़ा उसे आदर दिखलाने आए
चंदन, कपूर की चिता रचाने आए,
सोचा, किस महारथी की अरथी आती,
सोचा, उसने किस रण में प्राण बिछाए?”
Death anniversary of Dr. Harivanshrai Bachchan: डॉ. हरिवंशराय बच्चन, हिंदी साहित्य के एक महान कवि और बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के पिता थे। उनका देहांत 18 जनवरी 2003 में हुआ था। बच्चन जी का जीवन बहुत मुश्किलों में गुज़रा। हरिवंशराय जी का मूल नाम हरिवंशराय श्रीवास्तव था। बचपन में लोग उन्हें ‘बच्चन’ कहते थे, जिसका अर्थ है ‘बच्चा’। जैसे-जैसे वह बड़े हुए, लोग उन्हें बच्चन नाम से जानने लगे। उन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की। 1955 में, हरिवंश राय बच्चन ने दिल्ली के एक विभाग में काम करना शुरू किया। उन्होंने लंबे समय तक वहां काम किया और हिंदी भाषा को बेहतर बनाने में मदद की।
बच्चन जी अपनी कविता “मधुशाला” की रचना के लिए मशहूर हैं। वह ‘साहित्य अकादमी अवार्ड’ से सम्मानित हैं। 1976 में हिंदी भाषा के विकास में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
उनकी कविताओं में हमें वीर रस, रौद्र रस, और करुणा रस ज़्यादा देखने को मिलते हैं। उनकी अधिकतर कविताएं पाठक के मन में क्रांति और वीरता के भाव पैदा करती थी। उनकी कुछ रचनाओं का नाम है “चार खेमे चौंसठ खूंटे”, “एकांत-संगीत”, “मधुबाला”, “मधुकलश”, “खादी के फूल” और अन्य।
आजकल के समय में सच क्या है वह पता ही नहीं चलता। और सच अक्सर कोई बोलना ही नहीं चाहता। झूठ को जैसे लोगों ने अपने शरीर का एक अहम हिस्सा बना लिया है। सच न तो लोग बोलते हैं और न ही सुनना पसंद करते हैं। सत्य की जैसे लोगों ने मिलके हत्या ही कर दी है। इसलिए आज हरिवंशराय बच्चन जी की जयंती पर उनकी “सत्य की हत्या” कविता को पढ़ते हैं।
आज सत्य
असह्य इतना हो गया है
कान में सीसा गला
ढलवा सकेंगे,
सत्य सुनने को नहीं तैयार होंगे;
आँख पर पट्टी बँधा लेंगे,
निकलवा भी सकेंगे,
रहेंगे अन्धे सदा को,
सत्य देखेंगे नहीं पर;
घोर विषधर सर्प,
लोहे की शलाका, गर्म, लाल,
पकड़ सकेंगे मुठ्ठियों में,
उँगलियों से सत्य
छूने की नहीं हिम्मत करेंगे।
इसलिए चारों तरफ षड़यंत्र है
उसके गले को घोंटने का,
या कि उस पर धुल-परदा डालने का,
या कि उसको खड़ा, ज़िंदा गाड़ने का।
किन्तु वे अपनी सफलता पर न फूलें।
सत्य तो बहुरुपिया है।
सत्य को ज़िंदा अगर वे गाड़ देंगे,
पच न धरती से सकेगा,
फसल बनकर उगेगा,
जो अन्न खायेगा
बनेगा क्रन्तिकार।
सत्य पर गर धुल-परदा डाल देंगे,
वह हटाकर-फाड़कर के नग्न,
रस्मी लाज को धक्का लगाएगा,
सभी का ध्यान आकर्षित करेगा।
गला घोंटेंगे अगर उसका
किसी कवि कंठ में वह छटपटाएगा,
निकलकर, गीत बनकर
ह्रदय में हल चल मचाएगा।
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