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Wednesday, April 16   2:08:20

वडोदरा के मांडवी गेट पर मंडरा रहा है ख़तरा ; क्या इतिहास बन जाएगा मलबा?

गुजरात के वड़ोदरा शहर को महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ की विरासत यूं ही नहीं कहा जाता। आलीशान महल, भव्य स्थापत्य और ऐतिहासिक दरवाज़ों की ये ज़मीन हर गुजरते कदम पर इतिहास की गवाही देती है। उन्हीं धरोहरों में से एक है — मांडवी दरवाज़ा, जो आज खस्ताहाली का शिकार है।

इतिहास की दीवारें कर रही हैं मदद की गुहार

मांडवी दरवाज़ा केवल एक दरवाज़ा नहीं, बल्कि वड़ोदरा की पहचान है। 18वीं शताब्दी में बने इस दरवाज़े का इस्तेमाल शहर की चौहद्दी तय करने और प्रशासनिक कार्यों के लिए होता था। यह गायकवाड़ शासनकाल की शौर्यगाथा का प्रतीक है — जहाँ से राजा की सवारी गुज़रती थी, जहाँ शहर की चौकसी होती थी। आज वहीं दरवाज़ा अपनी नींव खोता जा रहा है, और उसके खंभों से गिरते पत्थर सिर्फ चूना-पत्थर नहीं, बल्कि इतिहास के आंसू हैं।

मरम्मत के नाम पर आश्वासन, ज़मीन पर खामोशी

बीते कई वर्षों से मांडवी दरवाज़ा की मरम्मत की बातें तो खूब होती रही हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि हर बीतते दिन के साथ यह ऐतिहासिक संरचना जर्जर होती जा रही है। हाल ही में दरवाज़े के पिलर से लगातार पत्थर गिरने की घटनाओं ने चिंता और बढ़ा दी है।

पुजारी का अनोखा विरोध, कांग्रेस का आंदोलन

इसी खतरे को देखते हुए विट्ठलनाथजी मंदिर के पुजारी हरिओम व्यास ने अपनी तरह से इस दरवाज़े को बचाने की मुहिम शुरू की है। वहीं वड़ोदरा कांग्रेस पार्टी ने भी इस मामले को लेकर आज प्रदर्शन किया। हाथों में बैनर और पोस्टर लिए कार्यकर्ताओं ने मांडवी दरवाज़े की ऐतिहासिक पहचान को बचाने की मांग की।

प्रदर्शन में सियासत और टकराव

लेकिन यह विरोध-प्रदर्शन सिर्फ नारेबाज़ी तक नहीं रुका। पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, जिससे मौके पर तनाव और घर्षण की स्थिति बन गई। सियासी तूल पकड़ते इस मामले में अब राजनेताओं की एंट्री भी हो चुकी है।

विधायक और सांसद भी पहुंचे मौके पर

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गुजरात विधानसभा के मुख्य दंडक और विधायक बालकृष्ण शुक्ल तथा वड़ोदरा के सांसद डॉक्टर हेमांग जोशी ने मांडवी दरवाज़ा का दौरा किया। उन्होंने स्थानीय निवासियों और पुजारी से बातचीत कर समाधान निकालने का भरोसा दिया।

 इतिहास को बचाना राजनीति से ज़्यादा ज़रूरी है

मांडवी दरवाज़ा कोई साधारण इमारत नहीं है — यह हमारी जड़ों से जुड़ा प्रतीक है। ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें सिर्फ ईंट और पत्थरों से नहीं बनतीं, बल्कि उनमें वक्त, विरासत और संस्कृति रची-बसी होती है।

सरकारों का दायित्व केवल विकास की बातें करना नहीं, इतिहास को सहेजना भी होना चाहिए। सड़कों पर उतरे बैनरों से ज़्यादा असरदार होगा यदि जल्द से जल्द इस दरवाज़े की मरम्मत शुरू की जाए। मांडवी दरवाज़ा को बचाना सिर्फ वड़ोदरा का काम नहीं — ये पूरे गुजरात की सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।

अगर हमने अभी नहीं सोचा, तो अगली पीढ़ी इतिहास की किताबों में केवल “मांडवी दरवाज़ा हुआ करता था” पढ़ेगी। और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी…