भारत के स्वतंत्रता संग्राम में डांडी मार्च एक ऐसा ऐतिहासिक आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह यात्रा शुरू हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कानून का विरोध करना था। लेकिन इस आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें महिलाओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया और जब गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया, तब उन्होंने इस सत्याग्रह की कमान संभाली। महिलाओं की इस अद्भुत भूमिका ने स्वतंत्रता संग्राम को और भी मजबूती प्रदान की।
डांडी मार्च: एक ऐतिहासिक सत्याग्रह
ब्रिटिश सरकार ने भारत में नमक उत्पादन और बिक्री पर कर लगा दिया था, जिससे आम जनता को बहुत परेशानी हो रही थी। गांधी जी ने इस अन्यायपूर्ण कर का विरोध करने के लिए डांडी यात्रा शुरू की। यह यात्रा साबरमती आश्रम से डांडी गांव (गुजरात) तक लगभग 384 किलोमीटर की थी। 24 दिन तक चली इस यात्रा में हजारों भारतीय शामिल हुए और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
महिलाओं की भागीदारी
महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी पहले भी रही थी, लेकिन डांडी मार्च और उसके बाद के आंदोलनों में उनका योगदान अभूतपूर्व था। जब गांधी जी और अन्य पुरुष नेता गिरफ्तार कर लिए गए, तो महिलाओं ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। सरोजिनी नायडू, कमला देवी चट्टोपाध्याय, कस्तूरबा गांधी, सुचेता कृपलानी और अन्य अनेक महिलाओं ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महिलाओं के नेतृत्व में आंदोलन की सफलता
गांधी जी के जेल जाने के बाद भी आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि और अधिक मजबूत हो गया। महिलाओं ने सत्याग्रह आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए खुद नमक बनाया, जुलूस निकाले, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए।
1. सरोजिनी नायडू: जब गांधी जी गिरफ्तार हो गए, तो सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के एक समूह का नेतृत्व किया और धरसाना साल्ट वर्क्स (गुजरात) पर सत्याग्रह किया। ब्रिटिश पुलिस ने इस सत्याग्रह को दबाने के लिए लाठीचार्ज किया, लेकिन महिलाएं पीछे नहीं हटीं।
2. कमला देवी चट्टोपाध्याय: उन्होंने न केवल नमक सत्याग्रह में भाग लिया, बल्कि महिलाओं को इस आंदोलन से जोड़ने का भी कार्य किया। वह एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और स्वदेशी वस्त्र अपनाने पर जोर दिया।
3. कस्तूरबा गांधी: महात्मा गांधी की पत्नी होते हुए भी उन्होंने अपना एक अलग पहचान बनाई। उन्होंने जेल जाने के बावजूद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।
ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया
महिलाओं की इस क्रांतिकारी भागीदारी से ब्रिटिश सरकार घबरा गई। उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को जेल में डाल दिया, लेकिन इससे आंदोलन कमजोर नहीं हुआ, बल्कि और भी ताकतवर बन गया। महिलाओं ने साबित कर दिया कि वे सिर्फ घर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका निभा सकती हैं।
महिलाओं के योगदान का महत्व
डांडी मार्च और इसके बाद के आंदोलनों में महिलाओं के योगदान ने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा बदल दी। इससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत की महिलाएं साहसी, निडर और नेतृत्व करने में सक्षम हैं। महिलाओं के इस संघर्ष ने भारत की स्वतंत्रता को और करीब ला दिया।
डांडी मार्च केवल एक सत्याग्रह नहीं था, बल्कि यह महिलाओं के साहस और संघर्ष का प्रतीक भी था। उन्होंने गांधी जी के जेल जाने के बाद आंदोलन को संभालकर यह साबित कर दिया कि भारत की आज़ादी केवल पुरुषों के बलिदान से नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष से भी संभव हुई। आज, जब हम स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं, तो हमें उन बहादुर महिलाओं को भी याद रखना चाहिए, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष किया।

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