मुंबई में स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के एक व्यंग्यात्मक गाने पर मचे विवाद ने एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक असहिष्णुता की बहस को हवा दे दी है। विवादित गाने में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर तीखा व्यंग्य किया गया, जिसके बाद शिवसेना (शिंदे गुट) के कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ कर अपना आक्रोश जाहिर किया। मामले में कामरा के खिलाफ FIR दर्ज की गई, जबकि होटल यूनिकॉन्टिनेंटल में तोड़फोड़ के आरोप में 11 शिवसैनिक गिरफ्तार हुए हैं।
क्या है विवाद की जड़?
कुणाल कामरा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक व्यंग्यात्मक गाना पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने एकनाथ शिंदे को ‘गद्दार’ और ‘दल बदलू’ बताया। उन्होंने शिंदे के ठाणे से रिक्शा चालक के रूप में शुरू हुए सफर का भी जिक्र किया, जो अब सत्ता के शीर्ष तक पहुंच गया है। इस गाने में फडणवीस पर भी कटाक्ष किया गया, जिससे राजनीतिक माहौल गर्म हो गया।
प्रतिक्रिया और कार्रवाई
गाने के वायरल होते ही शिवसेना (शिंदे गुट) के कार्यकर्ताओं ने होटल यूनिकॉन्टिनेंटल में तोड़फोड़ की। स्टूडियो की कुर्सियां और लाइटें तोड़ी गईं। BMC ने भी होटल पर शिकंजा कसते हुए तोड़फोड़ की कार्रवाई की। इस बीच, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि कामरा को माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी सीमाएं होती हैं।
शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि ‘गद्दार को गद्दार कहना किसी पर हमला नहीं है।’ संजय राउत ने भी इस घटना को लेकर फडणवीस को ‘कमजोर गृह मंत्री’ कहकर घेरा।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल
इस पूरे प्रकरण ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है – क्या व्यंग्य और आलोचना की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है? संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है, लेकिन बार-बार इसके दुरुपयोग और राजनीतिक दबाव में असहमति की आवाज को कुचला जा रहा है।
कुणाल कामरा ने संविधान की किताब के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट कर स्पष्ट किया कि वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और सच बोलने से पीछे नहीं हटेंगे। दूसरी ओर, शिवसेना (शिंदे गुट) का कहना है कि उपमुख्यमंत्री पर इस तरह की भाषा का इस्तेमाल अस्वीकार्य है।
कुणाल कामरा का व्यंग्यात्मक गाना सत्ता के प्रति सवाल उठाने की एक कोशिश थी। लेकिन जिस तरह से उस पर प्रतिक्रिया हुई, वह यह दर्शाता है कि सत्ता की आलोचना को सहन करने की क्षमता लगातार घट रही है। लोकतंत्र में असहमति और व्यंग्य का सम्मान करना चाहिए, न कि उसे दबाने का प्रयास करना।
कहीं ऐसा तो नहीं कि सत्ताधारी दल जनता की आवाज से डरने लगे हैं? सवाल यही है कि जब भी कोई सरकार के खिलाफ बोलता है, तो उसके जवाब में तोड़फोड़ और धमकी क्यों मिलती है?
समय आ गया है कि हम इस असहिष्णुता को चुनौती दें और अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करें, ताकि लोकतंत्र की असली ताकत बरकरार रहे।

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