भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी चर्चा का केंद्र बन गए हैं। इस बार उनकी चर्चा उनके खेल प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि रमजान के दौरान रोजा न रखने के कारण हो रही है। 1 मार्च से रमजान का महीना शुरू हो चुका है, और इस दौरान मुसलमान रोजाना रोजा रखते हैं, लेकिन शमी को मैच के दौरान एनर्जी ड्रिंक पीते देखा गया, जिससे यह साफ हो गया कि वह रोजा नहीं रख रहे थे।
रमजान के दौरान मुसलमान सुबह सहरी करके दिनभर का उपवास शुरू करते हैं और शाम को इफ्तार के समय इसे खोलते हैं। इस समय, खाने-पीने से परहेज करना पड़ता है। शमी, जो भारतीय टीम के प्रमुख गेंदबाज हैं, को एनर्जी ड्रिंक पीते देख फैंस ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया। कुछ लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं, जबकि कुछ उनके निर्णय का समर्थन कर रहे हैं, यह कहते हुए कि शमी को अपनी टीम और मैच पर ध्यान केंद्रित करना था।
कुछ यूजर्स ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी हाशिम अमला का उदाहरण दिया, जिन्होंने रमजान के दौरान उपवास रखते हुए शानदार प्रदर्शन किया। उनके अनुसार, अगर अमला ऐसा कर सकते हैं तो शमी को भी रमजान के दौरान उपवास रखते हुए अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए था। यह टिप्पणी शमी को लेकर अधिक आलोचना का कारण बनी।
शमी का पेशेवर जीवन और उनका खेल अत्यधिक शारीरिक दबाव के तहत होता है। ऐसे में उन्हें अपने शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कुछ मामलों में रोजा न रखने का निर्णय लेना पड़ सकता है, खासकर जब मैच के दौरान उन्हें शारीरिक ऊर्जा की आवश्यकता हो। कई मुस्लिम खिलाड़ी अपनी धार्मिक प्रथाओं को अपने पेशेवर कर्तव्यों के साथ संतुलित करते हैं, और यह एक व्यक्तिगत निर्णय होता है।
इस विवाद पर प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक हैं, लेकिन इस मामले में एक चीज़ साफ है — मोहम्मद शमी को खेल के मैदान पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का पूरा अधिकार है। वहीं, उनके व्यक्तिगत धार्मिक चुनाव को लेकर आलोचना करना कहीं न कहीं उनकी निजता का उल्लंघन करना हो सकता है। इस विवाद को लेकर दो राय होना स्वाभाविक है, और इसे सही या गलत के नजरिए से देखना शायद उतना उचित नहीं है।
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