National Cinema Day 2024: सिनेमा, जिसे सातवीं कला कहा जाता है, मानव सभ्यता की एक अद्वितीय अभिव्यक्ति है। सिनेमा दिवस (20 सितंबर) का उत्सव भारत में खास महत्त्व रखता है, क्योंकि भारत की फिल्म इंडस्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्रीज़ में से एक है। आज के समय में सिनेमाघरों की भरमार है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब टॉकी फिल्मों का चलन नहीं था और नाटकों का युग था।
नवाब महोबत खानजी तृतीय और जूनागढ़ का थिएटर प्रेम
जब नाटकों का दौर था, तब जूनागढ़ के नवाब महोबत खानजी तृतीय ने नाटक मंडलियों के प्रति अपने अनोखे प्रेम का प्रदर्शन किया। उन्होंने 1882 में जूनागढ़ के सरदारबाग में एक थिएटर का निर्माण करवाया। पालीताणा के मणिशंकर भट्ट के नेतृत्व में प्रथम भक्ति प्रशांत नाटक मंडल को नवाब ने जूनागढ़ में बुलाया। नवाब इस मंडली के नाटकों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कलाकारों के लिए घर और पेंशन की व्यवस्था की ताकि वे किसी अन्य स्थान पर जाकर नाटक न करें। यह देश में पहली बार हुआ कि किसी थिएटर मंडली के लिए मकान और पेंशन की शुरुआत की गई। 1882 में आचार्य वल्लभजी हरिदत ने प्रबोध चंद्रदोई नामक नाटक प्रस्तुत किया, जो जूनागढ़ के थिएटर इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
फिल्म उद्योग का स्वर्णिम युग
जब सिनेमा का प्रारंभ हुआ, तो मुगल-ए-आज़म, मदर इंडिया, कुर्बानी जैसी फिल्मों ने भारतीय फिल्म जगत में धूम मचाई। ये फिल्में 25 से 50 हफ्ते तक सिनेमाघरों में चला करती थीं और इनकी लोकप्रियता गोल्डन जुबली (50 हफ्ते) और सिल्वर जुबली (25 हफ्ते) के रूप में मनाई जाती थी। उस समय सिनेमा के टिकट की कीमतें बेहद कम होती थीं—सिर्फ 30 पैसे से 50 पैसे तक, और कुछ समय बाद दो से ढाई रुपये तक हो गई थीं।
आज के सिनेमा का बदलता स्वरूप
वर्तमान में फिल्में बमुश्किल एक से दो हफ्ते तक सिनेमाघरों में टिक पाती हैं, और टिकट की कीमतें 150 से 200 रुपये या उससे भी अधिक हो चुकी हैं। ओटीटी प्लेटफार्मों के आगमन के साथ, दर्शकों के देखने का तरीका बदल गया है, लेकिन सिनेमा हॉल का अनुभव आज भी फिल्म प्रेमियों के लिए खास है। National Cinema Day 2024 इसी भावना को संजोता है, जिससे सिनेमा हॉल में फिल्मों को बड़े पर्दे पर देखने का उत्साह बना रहे।
National Cinema Day न केवल फिल्मों के प्रचार का एक साधन है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा के गौरवशाली इतिहास और नवाबों जैसे संरक्षकों के योगदान को भी याद करने का अवसर है, जिन्होंने थिएटर और कला को जीवित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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