अयोध्या के खजुराहट गोला बाजार में एक सिलाई-कढ़ाई केंद्र के भीतर आयोजित प्रार्थना सभा का मामला हाल ही में सुर्खियों में आया है। यहां कुछ लोगों ने ईसाई धर्म अपनाने के लिए 2 से 5 लाख रुपये तक का लालच दिया। मुख्य रूप से दलित और गरीब परिवारों को निशाना बनाया गया।
साक्षात्कार में भाग लेने वाले एक व्यक्ति, रविंद्र तिवारी, ने बताया कि उन्हें और उनके दोस्तों को जबरन सभा में बुलाया गया और ईसाई धर्म अपनाने का दबाव डाला गया। जब उन्होंने विरोध किया, तो उन पर हमले की कोशिश की गई। इस प्रकरण में 36 लोगों को हिरासत में लिया गया है, और पुलिस ने 2600 बाइबिल और अन्य धार्मिक सामग्रियां जब्त की हैं।
इस मामले की जांच में पता चला कि यह एक व्यापक नेटवर्क है, जिसमें गोंडा, बाराबंकी, और अन्य क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। प्रारंभिक जांच में अनुमान है कि लगभग 2000 लोगों को इस गिरोह द्वारा धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया गया है।
यह घटना न केवल धार्मिक असहिष्णुता की ओर इशारा करती है, बल्कि यह भी बताती है कि आर्थिक शोषण के माध्यम से लोगों को धर्मांतरित करने की कोशिशें चल रही हैं। ऐसे मामलों को रोकने के लिए सख्त कानून और समाज में जागरूकता की आवश्यकता है। धार्मिक आस्था व्यक्तिगत और स्वच्छंद होनी चाहिए, न कि आर्थिक लालच के आधार पर।
अयोध्या में धर्मांतरण की यह साजिश हमें बताती है कि किस प्रकार धार्मिक सहिष्णुता की सीमाएं खतरे में हैं। समाज को ऐसे प्रयासों के प्रति सजग रहना चाहिए और एकजुट होकर इस प्रकार के शोषण का विरोध करना चाहिए।
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