भारत में जहाँ योग, आयुर्वेद और संस्कृति के प्रतीक माने जाने वाले योगगुरु बाबा रामदेव का नाम हर जुबां पर रहा है, वहीं अब उनका एक विवादित बयान उन्हें अदालत की चौखट तक ले आया है। ‘शर्बत जिहाद’ शब्द के प्रयोग ने न केवल सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा कर दिया, बल्कि दिल्ली उच्च न्यायालय तक को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि यह “न्यायपालिका की अंतरात्मा को झकझोर देता है।”
हाईकोर्ट ने बाबा रामदेव की कड़ी खिंचाई करते हुए कहा कि इस तरह के बयान समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं और धार्मिक सौहार्द को चोट पहुँचाते हैं। पतंजलि के संस्थापक रामदेव का यह बयान खास तौर पर रमजान और इफ्तार के दौरान मुस्लिम समुदाय द्वारा लोगों को शर्बत पिलाने की परंपरा को लेकर दिया गया था, जिसे उन्होंने ‘जिहाद’ की संज्ञा दे डाली।
यह टिप्पणी ना केवल अमर्यादित मानी गई, बल्कि यह सवाल भी उठाया गया कि क्या एक प्रसिद्ध सार्वजनिक व्यक्तित्व को इतनी जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि वह समाज में समरसता बनाए रखने में योगदान दे, न कि विघटन का कारण बने?
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कुछ लोगों ने इसे “सच्चाई का बयान” कहा, तो बहुत से लोगों ने इसे “घृणा का ज़हर” बताया। अदालत ने यह भी संकेत दिए हैं कि अगर इस प्रकार की टिप्पणियाँ दोहराई गईं तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
इस घटना ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है — क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए? क्या समाज के प्रभावशाली चेहरों को अपने शब्दों की ताकत और असर को नहीं समझना चाहिए?
अब देखना यह है कि इस मामले का कानूनी अंजाम क्या होता है, और क्या इससे हमारे सामाजिक ताने-बाने में कोई बदलाव आएगा, या यह भी एक विवाद बनकर खबरों के पन्नों में गुम हो जाएगा।

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