हाल ही में बाबा रामदेव ने ‘शरबत जिहाद’ को लेकर एक बयान दिया, जिसने सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों तक बहस का मुद्दा बना दिया। मामला तब और उछल गया जब रूह अफ़ज़ा ब्रांड का नाम बीच में आ गया, हालांकि बाबा रामदेव ने स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया।
रामदेव बोले “मैंने किसी ब्रांड का नाम नहीं लिया था, लेकिन अगर किसी ने खुद को उस बयान से जोड़ लिया, तो शायद वही उस दिशा में कुछ कर रहे होंगे।”
अब सोचने वाली बात ये है क्या किसी पेय पदार्थ या ब्रांड को ‘जिहाद’ से जोड़ देना एक जिम्मेदार बयान है ? क्या हम इतने असहिष्णु हो गए हैं कि हर बात को धर्म के चश्मे से देखने लगे हैं?
जहाँ एक तरफ समाज को जोड़ने की ज़रूरत है, वहीं इस तरह की बातों से केवल दूरी ही बढ़ती है। एक बोतल शरबत से ‘जिहाद’ निकाल लेना बताता है कि आज के दौर में नफरत कितनी जल्दी फैलती है और कैसे लोग अपनी पसंद-नापसंद पर उग्र प्रतिक्रिया देने लगे हैं।
रूह अफज़ा जैसे ब्रांड दशकों से भारतीय घरों का हिस्सा रहा है रोज़ों में, गर्मियों में, और त्योहारों में। इसे एक साज़िश के तहत देखना, केवल भावनाओं को भड़काने जैसा है।
क्या हमें नहीं सोचना चाहिए कि कौन सी बातें समाज को तोड़ रही हैं और कौन सी जोड़ रही हैं?
राजनीति, धर्म और बाज़ार इन सबका घाल मेल जब ज़िम्मेदारी से न किया जाए, तो नतीजे केवल विवाद होते हैं।

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