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चिराग पासवान का खेल खत्म? छोटे भाई प्रिंस ने खोली एक-एक पोल, लोजपा में सियासी भूचाल

पटना: लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के भीतर सत्ता की लड़ाई अब सार्वजनिक मंच पर पहुंच चुकी है। चिराग पासवान, जो अब तक पार्टी के निर्विवाद नेता माने जाते थे, अब अपने ही छोटे भाई प्रिंस राज के निशाने पर हैं। पहली बार प्रिंस ने मीडिया के सामने आकर बड़े भाई पर गंभीर आरोप लगाए हैं और संगठन की अंदरूनी कमजोरियों की परतें उधेड़ दी हैं।

बयान जो बन गए चर्चा का विषय प्रिंस राज ने एक साक्षात्कार में कहा,

“लोजपा अब रामविलास पासवान की पार्टी नहीं रही। यहां अब सिर्फ एक व्यक्ति की तानाशाही है। हमें अपने कार्यकर्ताओं को जवाब देना होता है, लेकिन पार्टी में अब चर्चा या सलाह-मशवरा जैसी कोई परंपरा नहीं बची है।”

इस बयान के बाद से बिहार की राजनीति में खलबली मच गई है। चिराग पासवान, जो खुद को ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे के साथ आगे लाने की कोशिश कर रहे थे, अब खुद ही परिवार और संगठन के भीतर से घिरते नजर आ रहे हैं।

क्या यह सिर्फ शक्ति प्रदर्शन है .? राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अरुण मिश्रा का कहना है,

“यह टकराव सिर्फ सत्ता का संघर्ष नहीं, बल्कि चिराग की नेतृत्व शैली के खिलाफ गहराता आक्रोश है। रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं—क्या चिराग उस विरासत को संभाल पाए या उन्होंने उसे नुकसान पहुंचाया?”

विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान का उग्र भाषण और व्यक्तिगत छवि निर्माण की कोशिशें पार्टी की सामूहिक संस्कृति के खिलाफ जाती हैं। प्रिंस की यह बगावत उसी असंतोष का परिणाम हो सकती है।

जब पार्टी टूटने के कगार पर पहुंची थी यह पहली बार नहीं है जब लोजपा में पारिवारिक विवाद सामने आया है। 2021 में भी लोजपा दो भागों में टूट गई थी—एक गुट चिराग पासवान का और दूसरा उनके चाचा पशुपति कुमार पारस का। तब भी चिराग को अकेले पड़ते देखा गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लोजपा (रामविलास) को खड़ा रखने की कोशिश की

अब जबकि उनके अपने छोटे भाई प्रिंस राज ने भी बगावत कर दी है, सवाल यह है कि क्या चिराग एक और संकट से निपट पाएंगे?

क्या होगा आगे? पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में कई और नेता प्रिंस के समर्थन में सामने आ सकते हैं। अगर ऐसा हुआ, तो चिराग के लिए संगठन को संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा। दूसरी ओर, अगर चिराग इस बगावत को बातचीत और सम्मानजनक संवाद के ज़रिए सुलझा लेते हैं, तो वे खुद को एक परिपक्व नेता के रूप में साबित कर सकते हैं ” लोजपा की इस भीतरी लड़ाई ने यह तो साफ कर दिया है कि परिवार और राजनीति का मेल हमेशा सहज नहीं होता। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चिराग पासवान क्या कोई नई रणनीति अपनाते हैं या प्रिंस राज की यह बगावत पार्टी में बदलाव की शुरुआत बनती है।