06-05-22
चेन्नई सुपर किंग्स IPL इतिहास में सबसे ज्यादा 9 बार फाइनल खेलने वाली टीम है। कभी कहा जाता था कि बाकी टीमें IPL इसलिए खेलती हैं ताकि फाइनल में चेन्नई से मुकाबला कर सकें। IPL 2022 इस चैंपियन टीम के लिए किसी बुरे सपने की तरह रहा है।
10 मुकाबले खेल चुकी CSK केवल 3 में जीत दर्ज कर सकी है और टूर्नामेंट से बाहर हो गई है। महेंद्र सिंह धोनी का सीजन की शुरुआत से 1 दिन पहले कप्तानी छोड़ना, सुरेश रैना को टीम में शामिल नहीं करना, धोनी के बाद सही कप्तान नहीं चुन पाना और एक्सप्रेस स्पीड बॉलर की कमी जैसी कुछ वजह सामने आ रही हैं।
सुरेश रैना को चेन्नई में चिन्ना थाला कहा जाता है। उन्होंने चेन्नई को अपने दम पर कई मुकाबले जिताए। ऐसे में ऑक्शन के दौरान रैना को ना खरीदना CSK के लिए नुकसानदायक रहा। नीलामी के बाद भी कम कीमत पर रैना बिक सकते थे, लेकिन तब भी चेन्नई ने उन्हें टीम के साथ जोड़ना जरूरी नहीं समझा। नतीजा यह हुआ कि चेन्नई सीजन की शुरुआत से पहले ही गलत कारणों से चर्चा में आ गई।
CSK मैनेजमेंट को लगातार सफाई देनी पड़ी कि टीम कॉन्बिनेशन में रैना फिट नहीं बैठ रहे थे। कहीं ना कहीं टीम के बाकी खिलाड़ियों पर भी रैना के साथ हुए बर्ताव का असर पड़ा। प्लेयर्स का ध्यान दूसरी तरफ चला गया और टीम पूरी तैयारी के साथ IPL में नहीं उतर सकी। रैना की कमी टीम को काफी खली क्योंकि मिडिल ऑर्डर में उनकी तरह कोई दूसरा बल्लेबाज टीम नहीं तलाश सकी।
टॉप 4 में चल रही सभी टीमों के पास एक्सप्रेस स्पीड गेंदबाज मौजूद हैं। ऐसे गेंदबाज जो अपनी गति से बल्लेबाज को धमका कर उनके विकेट निकाल सकें। गुजरात के पास लॉकी फर्ग्यूसन, राजस्थान के पास ट्रेंट बोल्ट, लखनऊ के पास आवेश खान और सनराइजर्स के पास जम्मू एक्सप्रेस उमरान मलिक उपलब्ध हैं। CSK की बात करें तो उसके स्ट्राइक बॉलर क्रिस जॉर्डन रहे। उनकी कम स्पीड का फायदा राशिद खान जैसे बल्लेबाजों ने भी उठाया और एक ओवर में 25 रन जड़कर चेन्नई से मुकाबला छीन लिया।
145 kmph से ऊपर की गेंदें फेंकने वाला बॉलर ना होना CSK को भारी पड़ा। इस वजह से किसी पार्टनरशिप को तोड़ने के लिए चेन्नई के कप्तान को बहुत मुश्किल पेश आती थी। विकेट टेकिंग बॉलर के ऑप्शन की कमी ने आखिरकार चेन्नई को टूर्नामेंट से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
रवींद्र जडेजा के साथ सबसे बड़ी समस्या यह रही कि वे अपने हिसाब से टीम नहीं चला सके। मैदान पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कप्तान की मौजूदगी जडेजा को फैसले लेने से रोकती रही। कई बार ऐसा लगा कि जड्डू सिर्फ टॉस करने के लिए हैं और टीम का असली बॉस कोई और है। इसी मानसिक दबाव में रवींद्र जडेजा का अपना प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा।
माही ने बताया कि शुरुआती दो मुकाबलों में तो उन्होंने जडेजा की पूरी मदद की, लेकिन इसके बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। जडेजा के पास कप्तानी का कोई अनुभव नहीं था और ऐसे में उन्होंने हड़बड़ी में कई गलत फैसले लिए, जो बाद में टीम पर भारी पड़े।
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