कल्पना कीजिए…सुबह-सुबह सूरज की सुनहरी किरणें एक हरे-भरे जंगल में उतरती हैं। पेड़ों पर चहचहाते पक्षी, साफ बहती नदी, और बच्चों की हँसी गूंजती है यह कोई परीकथा नहीं, बल्कि वही धरती है… अगर हम उसे सँभाल सकें।
22 अप्रैल अर्थ डे
ये सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि प्रकृति की चेतावनी है। हर साल 193 से भी ज़्यादा देशों में मनाया जाने वाला यह दिन, हमें याद दिलाता है कि “प्रकृति हमारी ज़रूरत है, हम उसकी नहीं।”
अर्थ डे की शुरुआत कैसे हुई?
साल 1970 में अमेरिका के एक सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण संकट को देखकर लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया।
उनकी पहल से पहली बार लाखों लोग सड़कों पर उतरे धरती की रक्षा के लिए!
तभी से हर साल 22 अप्रैल को पूरी दुनिया Earth Day मनाती है।
आज की धरती का हाल क्या है.?
ग्लोबल वॉर्मिंग: धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है।
ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।
जंगल कट रहे हैं, और वन्यजीव लुप्त हो रहे हैं।
प्रदूषण: हवा, पानी, मिट्टी सब जहरीली होती जा रही है।
प्लास्टिक की समस्या: हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है। सोचो, समुद्री जीव क्या खा रहे होंगे?
इस बार की थीम क्या है? “Planet vs. Plastics”
इसका मतलब पृथ्वी बनाम प्लास्टिक, यानी अब लड़ाई है हमारे भविष्य की रक्षा बनाम प्लास्टिक के लालच से।
सरल शब्दों में “या तो प्लास्टिक बचेगा, या प्रकृति।”
हम क्या कर सकते हैं?
1. एक पेड़, हज़ार साँसें: हर साल एक पेड़ लगाओ। वो तुम्हारा अपना ऑक्सीजन बैंक होगा।
2. प्लास्टिक को ना कहो: कपड़े का थैला इस्तेमाल करो, और सिंगल यूज़ प्लास्टिक से दूर रहो।
3. बिजली-पानी की इज्जत करो: नल टपक रहा है? बंद करो। पंखा चल रहा है बेवजह? स्विच ऑफ करो।
4. अपने गली-मोहल्ले को साफ रखो: खुद शुरुआत करो — लोग जुड़ने लगेंगे।
5. जानकारी फैलाओ: जो जानते हो, वो दूसरों को भी बताओ। यही असली बदलाव है।
बचपन की धरती को बचाना है…वो मिट्टी की खुशबू, वो पेड़ों की छाँव, वो साफ आसमान क्या हम उसे अगली पीढ़ी के लिए छोड़ पाएँगे?
या फिर हम उन्हें सिर्फ किताबों और कहानियों में ही “हरी धरती” दिखाएंगे?
अर्थ डे सिर्फ एक दिन नहीं, एक यात्रा की शुरुआत है
जहाँ हम प्रकृति के साथ फिर से जुड़ते हैं,
अपने अंदर के इंसान को फिर से जागते हैं,
और कहते हैं “मैं बदलाव लाऊँगा!”

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