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Thursday, December 12   1:47:38

संसद में मिली नोटों की गड्डी, महज संयोग या राजनीतिक ड्रामा?

6 दिसंबर को संसद में एक बड़ी घटना घटी, जिसने देशभर में हलचल मचाई। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अचानक यह ऐलान किया कि राज्यसभा की सीट नंबर 222 से नोटों की गड्डी मिली है। इसके बाद, राजनीति में इसे लेकर चर्चाएं तेज हो गईं। कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में जांच की मांग की है, जबकि भाजपा ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताते हुए विस्तृत जांच का समर्थन किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या संसद में नोटों की गड्डी का मिलना सिर्फ एक चूक है, या इसके पीछे कुछ और है?

किसकी हैं वो नोटों की गड्डियां?

धनखड़ ने बताया कि 6 दिसंबर को सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद सुरक्षा अधिकारियों ने यह जानकारी दी कि सीट नंबर 222 से नोटों की गड्डी मिली है। यह सीट कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की है, जो तेलंगाना राज्य से सांसद हैं। जब इस पर सवाल उठे, तो सिंघवी ने स्पष्ट किया कि यह नोटों की गड्डी उनकी नहीं है और वे इसके बारे में सुनकर हैरान हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे सदन में केवल तीन मिनट के लिए थे और बाकी समय कैंटीन में बैठे थे।

कांग्रेस की आपत्ति और भाजपा की प्रतिक्रिया

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, किसी सांसद का नाम नहीं लिया जाना चाहिए। उनके मुताबिक, यह संसद की गरिमा के खिलाफ है। वहीं, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि इस मामले की पूरी जांच होनी चाहिए और जो भी दोषी होगा, उसे सजा मिलनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि नाम लेना गलत नहीं है, क्योंकि सभापति ने सभी नियमों का पालन किया है।

क्या संसद में ज्यादा कैश ले जाना अपराध है?

यह भी सवाल उठता है कि क्या संसद में ज्यादा कैश ले जाना अपराध है? पीडीटी अचार्य के मुताबिक, संसद में ज्यादा कैश ले जाने का कोई नियम नहीं है। हालांकि, सुरक्षा के लिहाज से कैश को घोषित करना पड़ता है। अगर किसी सांसद के पास ज्यादा धनराशि मिलती है, तो उसे इसके बारे में जानकारी देनी होती है। संसद भवन में प्रवेश से पहले सुरक्षा जांच से गुजरने की प्रक्रिया है, जिसमें सांसदों के सामान की जांच होती है।

क्या यह मामला सिर्फ राजनीति है?

भगवानदेव इसरानी के मुताबिक, यह मामला राजनीतिक साजिश का भी हो सकता है। हो सकता है कि किसी ने जानबूझकर यह गड्डी रखी हो, या फिर यह गलती से गिर गई हो। इस पूरे मामले में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की कोई कमी नहीं है। कांग्रेस ने इसे अडानी मुद्दे से ध्यान भटकाने की साजिश बताया, जबकि भाजपा ने इसे विपक्ष के फर्जी बयानों के तौर पर पेश किया।

क्या संसद में यह पहली बार हुआ है?

इससे पहले 2008 में संसद में ‘नोट फॉर वोट’ स्कैम का मामला सामने आया था, जब भाजपा के तीन सांसदों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ विश्वास मत पर वोटिंग के दौरान नोटों की गड्डी लहराई थी। इसे सीबीआई ने जांच के लिए लिया था। इस बार मामला अलग है, क्योंकि यहां किसी का नाम सामने नहीं आया है और न ही यह साबित हुआ है कि नोटों की गड्डी किसकी थी।

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचार्य के मुताबिक, इस मामले की जांच अज्ञात के नाम पर की जाएगी। जांच के दौरान नोटों के नंबरों की जांच की जाएगी, ताकि यह पता चल सके कि यह गड्डी किस बैंक से निकाली गई थी और फिर यह सामने आ सके कि यह किसकी थी।

इस मामले ने संसद में एक नई बहस को जन्म दिया है। क्या यह एक साजिश है, या फिर सिर्फ एक चूक? अगर यह सच में एक साजिश है, तो इसके पीछे कौन है, और क्या यह राजनीतिक लाभ के लिए किया गया कदम था? इन सवालों के जवाब जांच के बाद ही सामने आएंगे, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि संसद में इस तरह की घटनाएं देश की लोकतांत्रिक गरिमा को धक्का पहुंचाती हैं। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए यह जरूरी है कि मामले की पूरी जांच हो और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।यह मामला केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह संसद के अंदर की सुरक्षा और अनुशासन पर सवाल उठाता है। अगर इस तरह की घटनाएं बढ़ती हैं, तो यह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकती है। इसलिए हमें संसद की कार्यवाही में पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत है।