महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच सत्ता साझा करने का बड़ा समझौता हो चुका है। बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस, जिन्होंने राज्य में पार्टी की ऐतिहासिक जीत सुनिश्चित की, अगले ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। इसके बाद, मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे को दी जाएगी। फडणवीस के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की योजना है।
यह सत्ता वितरण योजना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बीजेपी दोनों के बीच तय की गई है। RSS से जुड़े एक सूत्र के अनुसार, फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाए जाने का फैसला संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सहमति से लिया गया। फडणवीस का दोनों संगठनों के बीच अच्छा तालमेल उन्हें इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन करने का मुख्य कारण बना।
चुनाव जीतने के बाद मुंबई में बीजेपी कार्यालय के बाहर जश्न मनाया गया, जिसमें फडणवीस और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने मिलकर जलेबी बनाई, जो इस विजय के उत्सव को और भी खास बना दिया।
सत्ता का वितरण: भूमिकाएं और जिम्मेदारियां
सूत्रों के मुताबिक, सरकार गठन के लिए एक योजना तैयार हो चुकी है, जिसमें एक मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री होंगे। इस व्यवस्था के तहत, बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट) और NCP (अजीत गुट) के नेताओं को मंत्री पद मिलेंगे, जो चुनाव में उनके द्वारा जीते गए सीटों की संख्या के आधार पर तय होंगे। इस फॉर्मूले के मुताबिक, बीजेपी को 22-24 मंत्री, शिंदे गुट को 10-12 और NCP को 8-10 मंत्री पद मिल सकते हैं।
फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद, अगर वह जल्दी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं, तो उनकी जगह विनोद तावड़े या चंद्रकांत पाटिल जैसे नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। फिलहाल, यह तय है कि शिंदे गुट के एकनाथ शिंदे ढाई साल तक मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे।
बड़ी जीत की रणनीति: बीजेपी और RSS का सशक्त गठजोड़
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत का श्रेय बीजेपी और RSS के बीच बेहतरीन समन्वय को जाता है। एक सूत्र के अनुसार, फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी ने राज्य में अपनी पकड़ मजबूत की है, जो कि RSS के साथ उनकी रणनीतिक साझेदारी का परिणाम है। 2019 के लोकसभा चुनाव में RSS की भूमिका को लेकर बीजेपी ने शुरुआत में थोड़ी अनिच्छा दिखाई थी, लेकिन 2024 के बाद बीजेपी ने अपने चुनावी रणनीतियों को RSS के साथ साझा किया और इसका असर चुनावी परिणामों में साफ दिखाई दिया।
RSS ने न केवल प्रचार अभियान में मदद की, बल्कि बूथ स्तर पर भी अपनी पूरी ताकत झोंकी। 60,000 से अधिक RSS कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारा गया, जिन्होंने न केवल वोटर को पोलिंग बूथ तक पहुंचाया, बल्कि हिंदू त्योहारों के माध्यम से भाजपा का संदेश भी लोगों तक पहुंचाया।
इसके अलावा, RSS ने कई स्थानीय समूहों और धार्मिक संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया और खासकर मराठा, कुनबी और ओबीसी जैसी महत्वपूर्ण जातियों को बीजेपी के पक्ष में किया। इसके तहत कई सामाजिक और धार्मिक आयोजनों की योजना बनाई गई, जिनमें बीजेपी के कार्यक्रमों और विचारधाराओं का प्रचार किया गया।
राजनीतिक प्रबंधन की कला
जो सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है, वह है बीजेपी और RSS का सशक्त और प्रभावी राजनीतिक प्रबंधन। RSS ने न केवल चुनावी रणनीतियों को लागू किया, बल्कि राज्य की राजनीति के हर पहलू में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यह सिद्ध करता है कि RSS जमीन पर काम करने में माहिर है और चुनावों के दौरान हर छोटे से छोटे स्तर तक अपनी पकड़ बना सकता है।
हालांकि, इस शानदार रणनीति के बावजूद, एक चिंता का विषय भी है। सत्ता का यह साझा फॉर्मूला राज्य में नेतृत्व की स्थिरता को लेकर सवाल खड़े कर सकता है। दो ढाई साल के भीतर मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय कभी-कभी नीतियों में निरंतरता की कमी को जन्म दे सकता है। इससे सरकार के समग्र दृष्टिकोण और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।
फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत और सरकार का गठन RSS और बीजेपी के बीच बेहतर समन्वय का परिणाम है। राज्य में राजनीतिक समीकरणों को फिर से खड़ा करना और बीजेपी के पक्ष में निर्णायक जनसमर्थन जुटाना उनके अभियान की सबसे बड़ी सफलता रही है।
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